Samaysar (Hindi).

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कहानजैनशास्त्रमाला ]
पूर्वरंग
८५

इति श्रीसमयसारव्याख्यायामात्मख्यातौ पूर्वरंगः समाप्तः शान्तरसमें लीन करके सम्यग्दृष्टि बनाता है उसकी सूचनारूपमें रंगभूमिके अन्तमें आचार्यने ‘मज्जन्तु’ इत्यादि इस श्लोककी रचना की है वह, अब जीव-अजीवके स्वांगका वर्णन करेंगे इसका सूचक है ऐसा आशय प्रगट होता है इसप्रकार यहाँ तक रंगभूमिका वर्णन किया है

नत्यकुतूहल तत्त्वको, मरियवि देखो धाय
निजानन्दरसमें छको, आन सबै छिटकाय ।।

इसप्रकार (श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवप्रणीत) श्रीसमयसार परमागमकी (श्रीमद् अमृतचन्द्राचार्यदेवविरचित) आत्मख्याति नामक टीकामें पूर्वरङ्ग समाप्त हुआ