इति श्रीसमयसारव्याख्यायामात्मख्यातौ पूर्वरंगः समाप्तः ।
कहानजैनशास्त्रमाला ]
पूर्वरंग
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शान्तरसमें लीन करके सम्यग्दृष्टि बनाता है । उसकी सूचनारूपमें रंगभूमिके अन्तमें आचार्यने
‘मज्जन्तु’ इत्यादि इस श्लोककी रचना की है । वह, अब जीव-अजीवके स्वांगका वर्णन करेंगे
इसका सूचक है ऐसा आशय प्रगट होता है । इसप्रकार यहाँ तक रंगभूमिका वर्णन किया है ।
नत्यकुतूहल तत्त्वको, मरियवि देखो धाय ।
निजानन्दरसमें छको, आन सबै छिटकाय ।।
इसप्रकार (श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवप्रणीत) श्रीसमयसार परमागमकी (श्रीमद्
अमृतचन्द्राचार्यदेवविरचित) आत्मख्याति नामक टीकामें पूर्वरङ्ग समाप्त हुआ ।