Samaysar (Hindi).

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न सन्ति जीवस्य, पुद्गलद्रव्यपरिणाममयत्वे सत्यनुभूतेर्भिन्नत्वात् यानि कायवाङ्मनोवर्गणा-
परिस्पन्दलक्षणानि योगस्थानानि तानि सर्वाण्यपि न सन्ति जीवस्य, पुद्गलद्रव्यपरिणाममयत्वे
सत्यनुभूतेर्भिन्नत्वात्
यानि प्रतिविशिष्टप्रकृतिपरिणामलक्षणानि बन्धस्थानानि तानि सर्वाण्यपि न
सन्ति जीवस्य, पुद्गलद्रव्यपरिणाममयत्वे सत्यनुभूतेर्भिन्नत्वात् यानि स्वफलसम्पादन-
समर्थकर्मावस्थालक्षणान्युदयस्थानानि तानि सर्वाण्यपि न सन्ति जीवस्य, पुद्गलद्रव्यपरिणाममयत्वे
सत्यनुभूतेर्भिन्नत्वात्
यानि गतीन्द्रियकाययोगवेदकषायज्ञानसंयमदर्शनलेश्याभव्यसम्यक्त्व-
संज्ञाहारलक्षणानि मार्गणास्थानानि तानि सर्वाण्यपि न सन्ति जीवस्य, पुद्गलद्रव्यपरिणाममयत्वे
सत्यनुभूतेर्भिन्नत्वात्
यानि प्रतिविशिष्टप्रकृतिकालान्तरसहत्वलक्षणानि स्थितिबन्धस्थानानि तानि
सर्वाण्यपि न सन्ति जीवस्य, पुद्गलद्रव्यपरिणाममयत्वे सत्यनुभूतेर्भिन्नत्वात् यानि
कषायविपाकोद्रेकलक्षणानि संक्लेशस्थानानि तानि सर्वाण्यपि न सन्ति जीवस्य, पुद्गल-
द्रव्यपरिणाममयत्वे सत्यनुभूतेर्भिन्नत्वात्
यानि कषायविपाकानुद्रेकलक्षणानि विशुद्धिस्थानानि तानि
सर्वाण्यपि न सन्ति जीवस्य, पुद्गलद्रव्यपरिणाममयत्वे सत्यनुभूतेर्भिन्नत्वात् यानि चारित्रमोह-
१०८
समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
(अपनी) अनुभूतिसे भिन्न है १९ कायवर्गणा, वचनवर्गणा और मनोवर्गणाका कम्पन जिनका
लक्षण है ऐसे जो योग्यस्थान वे सर्व ही जीवके नहीं हैं, क्योंकि वह पुद्गलद्रव्यके परिणाममय
होनेसे (अपनी) अनुभूतिसे भिन्न है
२० भिन्न-भिन्न प्रकृतियोंके परिणाम जिनका लक्षण है ऐसे
जो बन्धस्थान वे सर्व ही जीवके नहीं हैं, क्योंकि वह पुद्गलद्रव्यके परिणाममय होनेसे (अपनी)
अनुभूतिसे भिन्न है
२१ अपने फलके उत्पन्न करनेमें समर्थ कर्म-अवस्था जिनका लक्षण है ऐसे
जो उदयस्थान वे सर्व ही जीवके नहीं हैं, क्योंकि वह पुद्गलद्रव्यके परिणाममय होनेसे (अपनी)
अनुभूतिसे भिन्न है
२२ गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या,
भव्य, सम्यक्त्व, संज्ञा और आहार जिनका लक्षण है ऐसे जो मार्गणास्थान वे सर्व ही जीवके नहीं
हैं, क्योंकि वह पुद्गलद्रव्यके परिणाममय होनेसे (अपनी) अनुभूतिसे भिन्न है
२३ भिन्न-भिन्न
प्रकृतियोंका अमुक काल तक साथ रहना जिनका लक्षण है ऐसे जो स्थितिबन्धस्थान वे सर्व
ही जीवके नहीं हैं, क्योंकि वह पुद्गलद्रव्यके परिणाममय होनेसे (अपनी) अनुभूतिसे भिन्न
है
२४ कषायके विपाककी अतिशयता जिनका लक्षण है ऐसे जो संक्लेशस्थान वे सर्व ही
जीवके नहीं हैं, क्योंकि वह पुद्गलद्रव्यके परिणाममय होनेसे (अपनी) अनुभूतिसे भिन्न है २५
कषायके विपाककी मन्दता जिनका लक्षण है ऐसे जो विशुद्धिस्थान वे सर्व ही जीवके नहीं हैं,
क्योंकि वह पुद्गलद्रव्यके परिणाममय होनेसे (अपनी) अनुभूतिसे भिन्न है
२६ चारित्रमोहके
विपाककी क्रमशः निवृत्ति जिनका लक्षण है ऐसे जो संयमलब्धिस्थान वे सर्व ही जीवके नहीं हैं,