Samaysar (Hindi).

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वर्गवर्गणास्पर्धकाध्यात्मस्थानानुभागस्थानयोगस्थानबंधस्थानोदयस्थानमार्गणास्थानस्थितिबन्धस्थान-
संक्लेशस्थानविशुद्धिस्थानसंयमलब्धिस्थानजीवस्थानगुणस्थानान्यपि व्यवहारतोऽर्हद्देवानां प्रज्ञापनेऽपि
निश्चयतो नित्यमेवामूर्तस्वभावस्योपयोगगुणेनाधिकस्य जीवस्य सर्वाण्यपि न सन्ति, तादात्म्य-
लक्षणसम्बन्धाभावात्
११४
समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
है ऐसे जीवका कोई भी वर्ण नहीं है इसीप्रकार गन्ध, रस, स्पर्श, रूप, शरीर, संस्थान,
संहनन, राग, द्वेष, मोह, प्रत्यय, कर्म, नोकर्म, वर्ग, वर्गणा, स्पर्धक, अध्यात्मस्थान,
अनुभागस्थान, योगस्थान, बन्धस्थान, उदयस्थान, मार्गणास्थान, स्थितिबन्धस्थान, संक्लेशस्थान,
विशुद्धिस्थान, संयमलब्धिस्थान, जीवस्थान और गुणस्थान
यह सब ही (भाव) व्यवहारसे
अरहन्तभगवान जीवके कहते हैं, तथापि निश्चयसे, सदा ही जिसका अमूर्त स्वभाव है और जो
उपयोग गुणके द्वारा अन्यसे अधिक है ऐसे जीवके वे सब नहीं हैं, क्योंकि इन वर्णादि भावोंके
और जीवके तादात्म्यलक्षण सम्बन्धका अभाव है
भावार्थ :ये वर्णसे लेकर गुणस्थान पर्यन्त भाव सिद्धान्तमें जीवके कहे हैं वे
व्यवहारनयसे कहे हैं; निश्चयनयसे वे जीवके नहीं हैं, क्योंकि जीव तो परमार्थसे उपयोगस्वरूप
है
यहाँ ऐसा जानना किपहले व्यवहारनयको असत्यार्थ कहा था सो वहाँ ऐसा न
समझना कि यह सर्वथा असत्यार्थ है, किन्तु कथंचित् असत्यार्थ जानना; क्योंकि जब एक
द्रव्यको भिन्न, पर्यायोंसे अभेदरूप, उसके असाधारण गुणमात्रको प्रधान करके कहा जाता है
तब परस्पर द्रव्योंका निमित्त-नैमित्तिकभाव तथा निमित्तसे होनेवाली पर्यायें
वे सब गौण हो
जाते हैं, वे एक अभेदद्रव्यकी दृष्टिमें प्रतिभासित नहीं होते इसलिये वे सब उस द्रव्यमें नहीं
है इसप्रकार कथंचित् निषेध किया जाता है यदि उन भावोंको उस द्रव्यमें कहा जाये तो वह
व्यवहारनयसे कहा जा सकता है ऐसा नयविभाग है
यहाँ शुद्धनयकी दृष्टिसे कथन है, इसलिये ऐसा सिद्ध किया है कि जो यह समस्त
भाव सिद्धान्तमें जीवके कहे गये हैं सो व्यवहारसे कहे गये हैं यदि निमित्त-नैमित्तिकभावकी
दृष्टिसे देखा जाये तो वह व्यवहार कथंचित् सत्यार्थ भी कहा जा सकता है यदि सर्वथा
असत्यार्थ ही कहा जाये तो सर्व व्यवहारका लोप हो जायेगा और सर्व व्यवहारका लोप होनेसे
परमार्थका भी लोप हो जायेगा
इसलिये जिनेन्द्रदेवका उपदेश स्याद्वादरूप समझना ही
सम्यग्ज्ञान है, और सर्वथा एकान्त वह मिथ्यात्व है ।।५८* से ६०।।