Samaysar (Hindi).

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अथ संसारस्थानां जीवानां तव भवन्ति वर्णादयः
तस्मात्संसारत्था जीवा रूपित्वमापन्नाः ।।६३।।
एवं पुद्गलद्रव्यं जीवस्तथालक्षणेन मूढमते
निर्वाणमुपगतोऽपि च जीवत्वं पुद्गलः प्राप्तः ।।६४।।
यस्य तु संसारावस्थायां जीवस्य वर्णादितादात्म्यमस्तीत्यभिनिवेशस्तस्य तदानीं स जीवो
रूपित्वमवश्यमवाप्नोति रूपित्वं च शेषद्रव्यासाधारणं कस्यचिद् द्रव्यस्य लक्षणमस्ति ततो
रूपित्वेन लक्ष्यमाणं यत्किञ्चिद्भवति स जीवो भवति रूपित्वेन लक्ष्यमाणं पुद्गलद्रव्यमेव भवति
एवं पुद्गलद्रव्यमेव स्वयं जीवो भवति, न पुनरितरः कतरोऽपि तथा च सति, मोक्षावस्थायामपि
नित्यस्वलक्षणलक्षितस्य द्रव्यस्य सर्वास्वप्यवस्थास्वनपायित्वादनादिनिधनत्वेन पुद्गलद्रव्यमेव स्वयं
जीवो भवति, न पुनरितरः कतरोऽपि
तथा च सति, तस्यापि पुद्गलेभ्यो भिन्नस्य
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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
गाथार्थ :[अथ ] अथवा यदि [तव ] तुम्हारा मत यह हो कि[संसारस्थानां
जीवानां ] संसारमें स्थित जीवोंके ही [वर्णादयः ] वर्णादिक (तादात्म्यस्वरूपसे) [भवन्ति ] हैं,
[तस्मात् ] तो इस कारणसे [संसारस्थाः जीवाः ] संसारमें स्थित जीव [रूपित्वम् आपन्नाः ]
रूपित्वको प्राप्त हुये; [एवं ] ऐसा होने पर, [तथालक्षणेन ] वैसा लक्षण (अर्थात् रूपित्वलक्षण)
तो पुद्गलद्रव्यका होनेसे, [मूढमते ] हे मूढबुद्धि ! [पुद्गलद्रव्यं ] पुद्गलद्रव्य ही [जीवः ] जीव
कहलाया [च ] और (मात्र संसार-अवस्थामें ही नहीं किन्तु) [निर्वाणम् उपगतः अपि ] निर्वाण
प्राप्त होने पर भी [पुद्गलः ] पुद्गल ही [जीवत्वं ] जीवत्वको [प्राप्तः ] प्राप्त हुआ !
टीका :फि र जिसका यह अभिप्राय है किसंसार-अवस्थामें जीवका वर्णादिभावोंके
साथ तादात्म्यसम्बन्ध है, उसके मतमें संसार-अवस्थाके समय वह जीव अवश्य रूपित्वको प्राप्त
होता है; और रूपित्व तो किसी द्रव्यका, शेष द्रव्योंसे असाधारण ऐसा लक्षण है
इसलिये
रूपित्व(लक्षण)से लक्षित (लक्ष्यरूप होनेवाला) जो कुछ हो वही जीव है रूपित्वसे लक्षित
तो पुद्गलद्रव्य ही है इसप्रकार पुद्गलद्रव्य ही स्वयं जीव है, किन्तु उसके अतिरिक्त दूसरा कोई
जीव नहीं है ऐसा होने पर, मोक्ष-अवस्थामें भी पुद्गलद्रव्य ही स्वयं जीव (सिद्ध होता) है,
किन्तु उसके अतिरिक्त अन्य कोई जीव (सिद्ध होता) नहीं; क्योंकि सदा अपने स्वलक्षणसे लक्षित
ऐसा द्रव्य सभी अवस्थाओंमें हानि अथवा ह्रासको न प्राप्त होनेसे अनादि-अनन्त होता है
ऐसा
होनेसे, उसके मतमें भी (संसार-अवस्थामें ही जीवका वर्णादिके साथ तादात्य माननेवालेके मतमें
भी), पुद्गलोंसे भिन्न ऐसा कोई जीवद्रव्य न रहनेसे, जीवका अवश्य अभाव होता है
भावार्थ :यदि ऐसा माना जाय कि संसार-अवस्थामें जीवका वर्णादिके साथ