Samaysar (Hindi). Kalash: 38.

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निश्चयतः कर्मकरणयोरभिन्नत्वात् यद्येन क्रियते तत्तदेवेति कृत्वा, यथा कनकपत्रं कनकेन
क्रियमाणं कनकमेव, न त्वन्यत्, तथा जीवस्थानानि बादरसूक्ष्मैकेन्द्रियद्वित्रिचतुःपंचेन्द्रिय-
पर्याप्तापर्याप्ताभिधानाभिः पुद्गलमयीभिः नामकर्मप्रकृतिभिः क्रियमाणानि पुद्गल एव, न तु जीवः
नामकर्मप्रकृतीनां पुद्गलमयत्वं चागमप्रसिद्धं दृश्यमानशरीरादिमूर्तकार्यानुमेयं च एवं
गन्धरसस्पर्शरूपशरीरसंस्थानसंहननान्यपि पुद्गलमयनामकर्मप्रकृतिनिर्वृत्तत्वे सति तदव्यतिरेका-
ज्जीवस्थानैरेवोक्तानि
ततो न वर्णादयो जीव इति निश्चयसिद्धान्तः
(उपजाति)
निर्वर्त्यते येन यदत्र किंचित्
तदेव तत्स्यान्न कथंचनान्यत्
१२०
समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
[प्रकृतिभिः ] प्रकृतियों [पुद्गलमयीभिः ताभिः ] जो कि पुद्गलमयरूपसे प्रसिद्ध हैं उनके द्वारा
[करणभूताभिः ] करणस्वरूप होकर [निर्वृत्तानि ] रचित [जीवस्थानानि ] जो जीवस्थान
(जीवसमास) हैं वे [जीवः ] जीव [कथं ] कैसे [भण्यते ] कहे जा सकते हैं ?
टीका :निश्चयनयसे कर्म और करणकी अभिन्नता होनेसे, जो जिससे किया जाता है
(होता है) वह वही हैयह समझकर (निश्चय करके), जैसे सुवर्णपत्र सुवर्णसे किया जाता
होनेसे सुवर्ण ही है, अन्य कुछ नहीं है, इसीप्रकार जीवस्थान बादर, सूक्ष्म, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय,
त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय, पर्याप्त और अपर्याप्त नामक पुद्गलमयी नामकर्मकी प्रकृतियोंसे
किये जाते होनेसे पुद्गल ही हैं, जीव नहीं हैं
और नामकर्मकी प्रकृतियोंकी पुद्गलमयता तो
आगमसे प्रसिद्ध है तथा अनुमानसे भी जानी जा सकती है, क्योंकि प्रत्यक्ष दिखाई देनेवाले शरीर
आदि तो मूर्तिक भाव हैं वे कर्मप्रकृतियोंके कार्य हैं, इसलिये कर्मप्रकृतियाँ पुद्गलमय हैं ऐसा
अनुमान हो सकता है
इसीप्रकार गन्ध, रस, स्पर्श, रूप, शरीर, संस्थान और संहनन भी पुद्गलमय नामकर्मकी
प्रकृतियोंके द्वारा रचित होनेसे पुद्गलसे अभिन्न है; इसलिये मात्र जीवस्थानोंको पुद्गलमय कहने
पर, इन सबको भी पुद्गलमय ही कथित समझना चाहिये
इसलिये वर्णादिक जीव नहीं हैं यह निश्चयनयका सिद्धान्त है ।।६५-६६।।
यहाँ इसी अर्थका कलशरूप काव्य कहते हैं :
श्लोकार्थ :[येन ] जिस वस्तुसे [अत्र यद् किंचित् निर्वर्त्यते ] जो भाव बने, [तत् ] वह
भाव [तद् एव स्यात् ] वह वस्तु ही है, [कथंचन ] किसी भी प्रकार [ अन्यत् न ] अन्य वस्तु नहीं
है; [इह ] जैसे जगतमें [रुक्मेण निर्वृत्तम् असिकोशं ] स्वर्णनिर्मित म्यानको [रुक्मं पश्यन्ति ] लोग