Samaysar (Hindi). Kalash: 45.

< Previous Page   Next Page >


Page 127 of 642
PDF/HTML Page 160 of 675

 

background image
(मन्दाक्रान्ता)
इत्थं ज्ञानक्रकचकलनापाटनं नाटयित्वा
जीवाजीवौ स्फु टविघटनं नैव यावत्प्रयातः
विश्वं व्याप्य प्रसभविकसद्वयक्तचिन्मात्रशक्त्या
ज्ञातृद्रव्यं स्वयमतिरसात्तावदुच्चैश्चकाशे
।।४५।।
कहानजैनशास्त्रमाला ]
जीव-अजीव अधिकार
१२७
अविवेकके नाटकमें अथवा नाचमें [वर्णादिमान् पुद्गलः एव नटति ] वर्णादिमान पुद्गल ही नाचता
है, [न अन्यः ] अन्य कोई नहीं; (अभेद ज्ञानमें पुद्गल ही अनेक प्रकारका दिखाई देता है, जीव
तो अनेक प्रकारका नहीं है;) [च ] और [अयं जीवः ] यह जीव तो [रागादि-पुद्गल-विकार-
विरुद्ध-शुद्ध-चैतन्यधातुमय-मूर्तिः ]
रागादिक पुद्गल-विकारोंसे विलक्षण, शुद्ध चैतन्यधातुमय
मूर्ति है
भावार्थ :रागादिक चिद्विकारोंको (-चैतन्यविकारोंको) देखकर ऐसा भ्रम नहीं करना
कि ये भी चैतन्य ही हैं, क्योंकि चैतन्यकी सर्वअवस्थाओंमें व्याप्त हों तो चैतन्यके कहलायें रागादि
विकार सर्व अवस्थाओंमें व्याप्त नहीं होतेमोक्षअवस्थामें उनका अभाव है और उनका अनुभव
भी आकुलतामय दुःखरूप है इसलिये वे चेतन नहीं, जड़ हैं चैतन्यका अनुभव निराकुल है,
वही जीवका स्वभाव है ऐसा जानना ।४४।
अब, भेदज्ञानकी प्रवृत्तिके द्वारा यह ज्ञाताद्रव्य स्वयं प्रगट होता है इसप्रकार कलशमें महिमा
प्रगट करके अधिकार पूर्ण करते हैं :
श्लोकार्थ :[इत्थं ] इसप्रकार [ज्ञान-क्रकच-कलना-पाटनं ] ज्ञानरूपी करवतका जो
बारम्बार अभ्यास है उसे [नाटयित्वा ] नचाकर [यावत् ] जहाँ [जीवाजीवौ ] जीव और अजीव
दोनाें [स्फु ट-विघटनं न एव प्रयातः ] प्रगटरूपसे अलग नहीं हुए, [तावत् ] वहाँ तो [ज्ञातृद्रव्य ]
ज्ञाताद्रव्य, [प्रसभ-विकसत्-व्यक्त -चिन्मात्रशक्त्या ] अत्यन्त विकासरूप होती हुई अपनी प्रगट
चिन्मात्रशक्तिसे [विश्वं व्याप्य ] विश्वको व्याप्त करके, [स्वयम् ] अपने आप ही [अतिरसात् ]
अति वेगसे [उच्चैः ] उग्रतया अर्थात् आत्यन्तिकरूपसे [चकाशे ] प्रकाशित हो उठा
भावार्थ :इस कलशका आशय दो प्रकारसे है :
उपरोक्त ज्ञानका अभ्यास करते करते जहाँ जीव और अजीव दोनों स्पष्ट भिन्न समझमें आये
कि तत्काल ही आत्माका निर्विकल्प अनुभव हुआसम्यग्दर्शन हुआ (सम्यग्दृष्टि आत्मा
श्रुतज्ञानसे विश्वके समस्त भावोंको संक्षेपसे अथवा विस्तारसे जानता है और निश्चयसे विश्वको प्रत्यक्ष
जाननेका उसका स्वभाव है; इसलिये यह कहा कि वह विश्वको जानता है
) एक आशय तो
इसप्रकार है