(शार्दूलविक्रीडित)
इत्येवं विरचय्य सम्प्रति परद्रव्यान्निवृत्तिं परां
स्वं विज्ञानघनस्वभावमभयादास्तिघ्नुवानः परम् ।
अज्ञानोत्थितकर्तृकर्मकलनात् क्लेशान्निवृत्तः स्वयं
ज्ञानीभूत इतश्चकास्ति जगतः साक्षी पुराणः पुमान् ।।४८।।
कथमात्मा ज्ञानीभूतो लक्ष्यत इति चेत् —
कम्मस्स य परिणामं णोकम्मस्स य तहेव परिणामं ।
ण करेइ एयमादा जो जाणदि सो हवदि णाणी ।।७५।।
कर्मणश्च परिणामं नोकर्मणश्च तथैव परिणामम् ।
न करोत्येनमात्मा यो जानाति स भवति ज्ञानी ।।७५।।
कहानजैनशास्त्रमाला ]
कर्ता-कर्म अधिकार
१४१
श्लोकार्थ : — [इति एवं ] इसप्रकार पूर्वक थित विधानसे, [सम्प्रति ] अधुना (तत्काल)
ही [परद्रव्यात् ] परद्रव्यसे [परां निवृत्तिं विरचय्य ] उत्कृष्ट (सर्व प्रकारे) निवृत्ति क̄रके,
[विज्ञानघनस्वभावम् परम् स्वं अभयात् आस्तिघ्नुवानः ] विज्ञानघनस्वभावरूप के वल अपने पर
निर्भयतासे आरूढ होता हुआ अर्थात् अपना आश्रय करता हुआ (अथवा अपनेको निःशंकतया
आस्तिक्यभावसे स्थिर करता हुआ), [अज्ञानोत्थितकर्तृकर्मकलनात् क्लेशात् ] अज्ञानसे उत्पन्न हुई
कर्ताकर्मकी प्रवृत्तिके अभ्याससे उत्पन्न क्लेशसे [निवृत्तः ] निवृत्त हुआ, [स्वयं ज्ञानीभूतः ] स्वयं
ज्ञानस्वरूप होता हुआ, [जगतः साक्षी ] जगतका साक्षी (ज्ञाताद्रष्टा), [पुराणः पुमान् ] पुराण पुरुष
(आत्मा) [इतः चकास्ति ] अब यहाँसे प्रकाशमान होता है ।४८।
अब पूछते हैं कि — आत्मा ज्ञानस्वरूप अर्थात् ज्ञानी हो गया यह कैसे पहिचाना जाता
है ? उसका चिह्न (लक्षण) कहिये । उसके उत्तररूप गाथा कहते हैं : —
जो कर्मका परिणाम अरु नोकर्मका परिणाम है
सो नहिं करे जो, मात्र जाने, वो हि आत्मा ज्ञानि है ।।७५।।
गाथार्थ — [यः ] जो [आत्मा ] आत्मा [एनम् ] इस [कर्मणः परिणामं च ] क र्मके
परिणामको [तथा एव च ] तथा [नोकर्मणः परिणामं ] नोक र्मके परिणामको [न करोति ] नहीं
करता, किन्तु [जानाति ] जानता है [सः ] वह [ज्ञानी ] ज्ञानी [भवति ] है ।