परमार्थतः पुद्गलपरिणामपुद्गलयोरेव घटमृत्तिकयोरिव व्याप्यव्यापकभावसद्भावात् पुद्गलद्रव्येण कर्त्रा
स्वतंत्रव्यापकेन स्वयं व्याप्यमानत्वात्कर्मत्वेन क्रियमाणं पुद्गलपरिणामात्मनोर्घटकुम्भकारयोरिव
व्याप्यव्यापकभावाभावात् कर्तृकर्मत्वासिद्धौ न नाम करोत्यात्मा, किन्तु परमार्थतः पुद्गलपरिणाम-
ज्ञानपुद्गलयोर्घटकुंभकारवद्वयाप्यव्यापकभावाभावात् कर्तृकर्मत्वासिद्धावात्मपरिणामात्मनोर्घट-
मृत्तिकयोरिव व्याप्यव्यापकभावसद्भावादात्मद्रव्येण कर्त्रा स्वतन्त्रव्यापकेन स्वयं व्याप्यमानत्वात्
पुद्गलपरिणामज्ञानं कर्मत्वेन कुर्वन्तमात्मानं जानाति सोऽत्यन्तविविक्तज्ञानीभूतो ज्ञानी स्यात्
सूक्ष्मता आदिरूपसे बाहर उत्पन्न होनेवाला जो नोकर्मका परिणाम, वह सब ही पुद्गलपरिणाम
हैं
कर्ताकर्मपना है
पुद्गलपरिणाम है उसे जो आत्मा, पुद्गलपरिणामको और आत्माको घट और कुम्हारकी भाँति
व्याप्यव्यापकभावके अभावके कारण कर्ताकर्मपनेकी असिद्धि होनेसे, परमार्थसे करता नहीं है,
परन्तु (मात्र) पुद्गलपरिणामके ज्ञानको (आत्माके) कर्मरूपसे करते हुए अपने आत्माको
जानता है, वह आत्मा (कर्मनोकर्मसे) अत्यन्त भिन्न ज्ञानस्वरूप होता हुआ ज्ञानी है
अभाव होनेसे कर्ताकर्मपनेकी असिद्धि है और जैसे घड़े और मिट्टीके व्याप्यव्यापकभावका
सद्भाव होनेसे कर्ताकर्मपना है उसीप्रकार आत्मपरिणाम और आत्माके व्याप्यव्यापकभावका
सद्भाव होनेसे कर्ताकर्मपना है
(व्याप्यरूप) होनेसे कर्म है