Samaysar (Hindi).

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गम्भीर आशयोंको यथार्थतया व्यक्त करके, उनके गणधरके समान कार्य किया है इस टीकामें
आनेवाले काव्य (-कलश) अध्यात्मरससे और आत्मानुभवकी मस्तीसे भरपूर हैं श्री
पद्मप्रभमलधारिदेव जैसे समर्थ मुनिवरों पर उन कलशोंने गहरी छाप डाली है और आज भी वे
तत्त्वज्ञानसे और अध्यात्मरससे भरे हुए मधुर कलश, अध्यात्मरसिकोंके हृदयके तारको झनझना देते
हैं
अध्यात्मकविरूपमें श्री अमृतचन्द्राचार्यदेवका स्थान जैन साहित्यमें अद्वितीय है
समयसारमें भगवान् कुन्दकुन्दाचार्यदेवने ४१५ गाथाओंकी प्राकृतमें रचना की है उस पर
श्री अमृतचन्द्राचार्यदेवने आत्मख्याति नामकी और श्री जयसेनाचार्यदेवने तात्पर्यवृत्ति नामकी संस्कृत
टीका लिखी है
पंडित जयचन्द्रजीने मूल गाथाओंका और आत्मख्यातिका हिन्दीमें भाषांतर किया
और उसमें स्वयंने थोड़ा भावार्थ भी लिखा है वह पुस्तक ‘समयप्राभृत’के नामसे विक्रम सं०
१९६४ में प्रकाशित हुई उसके बाद उस पुस्तकको पंडित मनोहरलालजीने प्रचलित हिंदीमें
परिवर्तित किया और श्री परमश्रुतप्रभावक मण्डल द्वारा ‘समयसार’के नामसे वि. सं. १९७५में
प्रकाशित हुआ
उस हिंदी ग्रन्थके आधारसे, उसीप्रकार संस्कृत टीकाके शब्दों तथा आशयसे
चिपके रहकर, यह गुजराती अनुवाद तैयार किया गया है
यह अनुवाद करनेका महाभाग्य मुझे प्राप्त हुआ यह मुझे अत्यंत हर्षका कारण है
परमपूज्य सद्गुरुदेव श्री कानजीस्वामीकी छत्रछायामें इस गहन शास्त्रका अनुवाद हुआ है अनुवाद
करनेकी समस्त शक्ति मुझे पूज्यपाद सद्गुरुदेवके पाससे ही मिली है मेरे द्वारा अनुवाद हुआ,
इसलिये ‘यह अनुवाद मैंने किया है’ ऐसा व्यवहारसे भले ही कहा जाये, परन्तु मुझे मेरी
अल्पताका पूरा ज्ञान होनेसे और अनुवादकी सर्व शक्तिका मूल पूज्य श्री सद्गुरुदेव ही होनेसे मैं
तो बराबर समझता हूँ कि सद्गुरुदेवकी अमृतवाणीका प्रपात ही
उनके द्वारा मिला हुआ अनमोल
उपदेश हीयथाकाल इस अनुवादरूपमें परिणमा है जिनके बल पर ही इस अतिगहन शास्त्रके
अनुवाद करनेका मैंने साहस किया था और जिनकी कृपासे यह निर्विघ्न पूरा हुवा है, उन परम
उपकारी सद्गुरुदेवके चरणारविंदमें अति भक्तिभावसे वंदन करता हूँ
इस अनुवादमें अनेक भाइयोंकी मदद है भाई श्री अमृतलाल माणेकलाल झाटकियाकी
इसमें सबसे ज्यादा मदद है उन्होंने सम्पूर्ण अनुवादका अति परिश्रम करके बहुत ही सूक्ष्मतासे
और उत्साहसे संशोधन किया है, बहुतसी अति-उपयोगी सूचनाएँ उन्होंने बताईं है, संस्कृत टीकाकी
हस्तलिखित प्रतियोंका मिलान कर पाठान्तरोंको ढूंढ दिया है, शंका-स्थलोंका समाधान
पण्डितजनोंसे बुला दिया हैं
इत्यादि अनेक प्रकारसे उन्होंने जो सर्वतोमुखी सहायता की है उसके
लिये मैं उनका अत्यंत आभारी हूँ अपने विशाल शास्त्रज्ञानसे, इस अनुवादमें पड़नेवाली छोटी
मोटी दिक्कतोंको दूर कर देनेवाले माननीय वकील श्री रामजीभाई माणेकचन्द दोशीका मैं हृदयपूर्वक
आभार मानता हूँ
भाषांतर करते समय जब जब कोई अर्थ बराबर नहीं बैठा तब तब मैंने पं०
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