यतः किलात्मपरिणामं पुद्गलपरिणामं च कुर्वन्तमात्मानं मन्यन्ते द्विक्रियावादिनस्ततस्ते
मिथ्यादृष्टय एवेति सिद्धान्तः । मा चैकद्रव्येण द्रव्यद्वयपरिणामः क्रियमाणः प्रतिभातु । यथा किल
कुलालः कलशसंभवानुकूलमात्मव्यापारपरिणाममात्मनोऽव्यतिरिक्तमात्मनोऽव्यतिरिक्तया परिणति-
मात्रया क्रियया क्रियमाणं कुर्वाणः प्रतिभाति, न पुनः कलशकरणाहंकारनिर्भरोऽपि स्वव्यापारानुरूपं
मृत्तिकायाः कलशपरिणामं मृत्तिकाया अव्यतिरिक्तं मृत्तिकायाः अव्यतिरिक्तया परिणतिमात्रया
क्रियया क्रियमाणं कुर्वाणः प्रतिभाति, तथात्मापि पुद्गलकर्मपरिणामानुकूलमज्ञानादात्म-
परिणाममात्मनोऽव्यतिरिक्तमात्मनोऽव्यतिरिक्तया परिणतिमात्रया क्रियया क्रियमाणं कुर्वाणः
प्रतिभातु, मा पुनः पुद्गलपरिणामकरणाहंकारनिर्भरोऽपि स्वपरिणामानुरूपं पुद्गलस्य परिणामं
पुद्गलादव्यतिरिक्तं पुद्गलादव्यतिरिक्तया परिणतिमात्रया क्रियया क्रियमाणं कुर्वाणः प्रतिभातु
।
कहानजैनशास्त्रमाला ]
कर्ता-कर्म अधिकार
१५७
गाथार्थ : — [यस्मात् तु ] क्योंकि [आत्मभावं ] आत्माके भावको [च ] और
[पुद्गलभावं ] पुद्गलके भावको — [द्वौ अपि ] दोनोंको [कुर्वन्ति ] आत्मा करता है ऐसा वे
मानते हैं, [तेन तु ] इसलिये [द्विक्रियावादिनः ] एक द्रव्यके दो क्रियाओंका होना माननेवाले
[मिथ्यादृष्टयः ] मिथ्यादृष्टि [भवन्ति ] हैं ।
टीका : — निश्चयसे द्विक्रियावादी (अर्थात् एक द्रव्यको दो क्रिया माननेवाले) यह
मानते हैं कि आत्माके परिणामको और पुद्गलके परिणामको स्वयं (आत्मा) करता है, इसलिये
वे मिथ्यादृष्टि ही हैं ऐसा सिद्धान्त है । एक द्रव्यके द्वारा दो द्रव्योंके परिणाम किये गये
प्रतिभासित न हों । जैसे कुम्हार घड़ेकी उत्पत्तिमें अनुकूल अपने (इच्छारूप और हस्तादिकी
क्रियारूप) व्यापारपरिणामको — जो कि अपनेसे अभिन्न है और अपनेसे अभिन्न परिणतिमात्र
क्रियासे किया जाता है उसे — करता हुआ प्रतिभासित होता है, परन्तु घड़ा बनानेके अहंकारसे
भरा हुआ होने पर भी (वह कुम्हार) अपने व्यापारके अनुरूप मिट्टीके घट-परिणामको — जो
कि मिट्टीसे अभिन्न है और मिट्टीसे अभिन्न परिणतिमात्र क्रियासे किया जाता है उसे — करता हुआ
प्रतिभासित नहीं होता; इसीप्रकार आत्मा भी अज्ञानके कारण पुद्गलकर्मरूप परिणामके अनुकूल
अपने परिणामको — जो कि अपनेसे अभिन्न है और अपनेसे अभिन्न परिणतिमात्र क्रियासे किया
जाता है उसे — करता हुआ प्रतिभासित हो, परन्तु पुद्गलके परिणामको करनेके अहंकारसे भरा
हुआ होने पर भी (वह आत्मा) अपने परिणामके अनुरूप पुद्गलके परिणामको — जो कि
पुद्गलसे अभिन्न है और पुद्गलसे अभिन्न परिणतिमात्र क्रियासे किया जाता है उसे — करता हुआ
प्रतिभासित न हो ।
भावार्थ : — आत्मा अपने ही परिणामको करता हुआ प्रतिभासित हो; पुद्गलके परिणामको