Samaysar (Hindi). Kalash: 51-52.

< Previous Page   Next Page >


Page 158 of 642
PDF/HTML Page 191 of 675

 

background image
(आर्या)
यः परिणमति स कर्ता यः परिणामो भवेत्तु तत्कर्म
या परिणतिः क्रिया सा त्रयमपि भिन्नं न वस्तुतया ।।५१।।
(आर्या)
एकः परिणमति सदा परिणामो जायते सदैकस्य
एकस्य परिणतिः स्यादनेकमप्येकमेव यतः ।।५२।।
१५८
समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
करता हुआ क दापि प्रतिभासित न हो आत्माकी और पुद्गलकीदोनोंकी क्रिया एक आत्मा
ही करता है ऐसा माननेवाले मिथ्यादृष्टि हैं जड़-चेतनकी एक क्रिया हो तो सर्व द्रव्योंके पलट
जानेसे सबका लोप हो जायेगायह महादोष उत्पन्न होगा ।।८६।।
अब इसी अर्थका समर्थक कलशरूप काव्य कहते हैं :
श्लोकार्थ :[यः परिणमति स कर्ता ] जो परिणमित होता है सो कर्ता है, [यः
परिणामः भवेत् तत् कर्म ] (परिणमित होनेवालेका) जो परिणाम है सो कर्म है [तु ] और
[या परिणतिः सा क्रिया ] जो परिणति है सो क्रिया है; [त्रयम् अपि ] य्ाह तीनों ही, [वस्तुतया
भिन्नं न ]
वस्तुरूपसे भिन्न नहीं हैं
भावार्थ :द्रव्यदृष्टिसे परिणाम और परिणामीका अभेद है और पर्यायदृष्टिसे भेद है
भेददृष्टिसे तो कर्ता, कर्म और क्रिया यह तीन कहे गये हैं, किन्तु यहाँ अभेददृष्टिसे परमार्थ
कहा गया है कि कर्ता, कर्म और क्रिया
तीनों ही एक द्रव्यकी अभिन्न अवस्थायें हैं,
प्रदेशभेदरूप भिन्न वस्तुएँ नहीं हैं ।५१।
पुनः कहते हैं कि :
श्लोकार्थ :[एकः परिणमति सदा ] वस्तु एक ही सदा परिणमित होती है, [एकस्य
सदा परिणामः जायते ] एकका ही सदा परिणाम होता है (अर्थात् एक अवस्थासे अन्य अवस्था
एककी ही होती है) और [एकस्य परिणतिः स्यात् ] एककी ही परिणति
क्रिया होती है; [यतः ]
क्योंकि [अनेकम् अपि एकम् एव ] अनेकरूप होने पर भी एक ही वस्तु है, भेद नहीं है
भावार्थ :एक वस्तुकी अनेक पर्यायें होती हैं; उन्हें परिणाम भी कहा जाता है और
अवस्था भी कहा जाता है वे संज्ञा, संख्या, लक्षण, प्रयोजन आदिसे भिन्न-भिन्न प्रतिभासित
होती हैं तथापि एक वस्तु ही है, भिन्न नहीं है; ऐसा ही भेदाभेदस्वरूप वस्तुका स्वभाव है ।५२।
और कहते हैं कि :