Samaysar (Hindi). Kalash: 53-55.

< Previous Page   Next Page >


Page 159 of 642
PDF/HTML Page 192 of 675

 

कहानजैनशास्त्रमाला ]
कर्ता-कर्म अधिकार
१५९
(आर्या)
नोभौ परिणमतः खलु परिणामो नोभयोः प्रजायेत
उभयोर्न परिणतिः स्याद्यदनेकमनेकमेव सदा ।।५३।।
(आर्या)
नैकस्य हि कर्तारौ द्वौ स्तो द्वे कर्मणी न चैकस्य
नैकस्य च क्रिये द्वे एकमनेकं यतो न स्यात् ।।५४।।
(शार्दूलविक्रीडित)
आसंसारत एव धावति परं कुर्वेऽहमित्युच्चकै-
र्दुर्वारं ननु मोहिनामिह महाहंकाररूपं तमः
तद्भूतार्थपरिग्रहेण विलयं यद्येकवारं व्रजेत्
तत्किं ज्ञानघनस्य बन्धनमहो भूयो भवेदात्मनः
।।५५।।

श्लोकार्थ :[न उभौ परिणमतः खलु ] दो द्रव्य एक होकर परिणमित नहीं होते, [उभयोः परिणामः न प्रजायेत ] दो द्रव्योंका एक परिणाम नहीं होता और [उभयोः परिणति न स्यात् ] दो द्रव्योंकी एक परिणतिक्रिया नहीं होती; [यत् ] क्योंकि जो [अनेकम् सदा अनेकम् एव ] अनेक द्रव्य हैं सो सदा अनेक ही हैं, वे बदलकर एक नहीं हो जाते

भावार्थ :जो दो वस्तुएँ हैं वे सर्वथा भिन्न ही हैं, प्रदेशभेदवाली ही हैं दोनों एक होकर परिणमित नहीं होती, एक परिणामको उत्पन्न नहीं करती और उनकी एक क्रिया नहीं होतीऐसा नियम है यदि दो द्रव्य एक होकर परिणमित हों तो सर्व द्रव्योंका लोप हो जाये ।५३।

पुनः इस अर्थको दृढ़ करते हैं :

श्लोकार्थ :[एकस्य हि द्वौ कर्तारौ न स्तः ] एक द्रव्यके दो कर्ता नहीं होते, [च ] और [एकस्य द्वे कर्मणी न ] एक द्रव्यके दो कर्म नहीं होते [च ] तथा [एकस्य द्वे क्रिये न ] एक द्रव्यकी दो क्रियाएँ नहीं होती; [यतः ] क्योंकि [एकम् अनेकं न स्यात् ] एक द्रव्य अनेक द्रव्यरूप नहीं होता

भावार्थ :इसप्रकार उपरोक्त श्लोकोंमें निश्चयनयसे अथवा शुद्धद्रव्यार्थिकनयसे वस्तुस्थितिका नियम कहा है ।५४।

आत्माको अनादिसे परद्रव्यके कर्ताकर्मपनेका अज्ञान है यदि वह परमार्थनयके ग्रहणसे एक बार भी विलयको प्राप्त हो जाये तो फि र न आये, अब ऐसा कहते हैं :