यदि खल्वयमात्मा परद्रव्यात्मकं कर्म कुर्यात् तदा परिणामपरिणामिभावान्यथानुप- पत्तेर्नियमेन तन्मयः स्यात्; न च द्रव्यान्तरमयत्वे द्रव्योच्छेदापत्तेस्तन्मयोऽस्ति । ततो व्याप्य- व्यापकभावेन न तस्य कर्तास्ति । (उपरोक्त) दोनों कर्म परद्रव्यस्वरूप हैं, इसलिये उनमें अन्तर न होनेसे — करता है, ऐसा व्यवहारी जनोंका व्यामोह (भ्रांति, अज्ञान) है ।
भावार्थ : — घट-पट, कर्म-नोकर्म इत्यादि परद्रव्योंको आत्मा करता है ऐसा मानना सो व्यवहारी जनोंका व्यवहार है, अज्ञान है ।।९८।।
गाथार्थ : — [यदि च ] यदि [सः ] आत्मा [परद्रव्याणि ] परद्रव्योंको [कुर्यात् ] करे तो वह [नियमेन ] नियमसे [तन्मयः ] तन्मय अर्थात् परद्रव्यमय [भवेत् ] हो जाये; [यस्मात् न तन्मयः ] किन्तु तन्मय नहीं है, [तेन ] इसलिये [सः ] वह [तेषां ] उनका [कर्ता ] कर्ता [न भवति ] नहीं है ।
टीका : — यदि निश्चयसे यह आत्मा परद्रव्यस्वरूप कर्मको करे तो, परिणाम-परिणामीभाव अन्य किसी प्रकारसे न बन सकनेसे, वह (आत्मा) नियमसे तन्मय (परद्रव्यमय) हो जाये; परन्तु वह तन्मय नहीं है, क्योंकि कोई द्रव्य अन्यद्रव्यमय हो जाये तो उस द्रव्यके नाशकी आपत्ति ( – दोष) आ जायेगा । इसलिये आत्मा व्याप्यव्यापकभावसे परद्रव्यस्वरूप कर्मका कर्ता नहीं है ।