त्यस्ति व्यामोहः ।
स न सन् —
जदि सो परदव्वाणि य करेज्ज णियमेण तम्मओ होज्ज ।
जम्हा ण तम्मओ तेण सो ण तेसिं हवदि कत्ता ।।९९।।
यदि स परद्रव्याणि च कुर्यान्नियमेन तन्मयो भवेत् ।
यस्मान्न तन्मयस्तेन स न तेषां भवति कर्ता ।।९९।।
यदि खल्वयमात्मा परद्रव्यात्मकं कर्म कुर्यात् तदा परिणामपरिणामिभावान्यथानुप-
पत्तेर्नियमेन तन्मयः स्यात्; न च द्रव्यान्तरमयत्वे द्रव्योच्छेदापत्तेस्तन्मयोऽस्ति । ततो व्याप्य-
व्यापकभावेन न तस्य कर्तास्ति ।
१८०
समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
(उपरोक्त) दोनों कर्म परद्रव्यस्वरूप हैं, इसलिये उनमें अन्तर न होनेसे — करता है, ऐसा व्यवहारी
जनोंका व्यामोह (भ्रांति, अज्ञान) है ।
भावार्थ : — घट-पट, कर्म-नोकर्म इत्यादि परद्रव्योंको आत्मा करता है ऐसा मानना सो
व्यवहारी जनोंका व्यवहार है, अज्ञान है ।।९८।।
अब यह कहते हैं कि व्यवहारी जनोंकी यह मान्यता सत्यार्थ नहीं है : —
परद्रव्यको जीव जो करे, तो जरूर वो तन्मय बने ।
पर वो नहीं तन्मय हुआ, इससे न कर्ता जीव है ।।९९।।
गाथार्थ : — [यदि च ] यदि [सः ] आत्मा [परद्रव्याणि ] परद्रव्योंको [कुर्यात् ] करे तो
वह [नियमेन ] नियमसे [तन्मयः ] तन्मय अर्थात् परद्रव्यमय [भवेत् ] हो जाये; [यस्मात् न
तन्मयः ] किन्तु तन्मय नहीं है, [तेन ] इसलिये [सः ] वह [तेषां ] उनका [कर्ता ] कर्ता [न
भवति ] नहीं है ।
टीका : — यदि निश्चयसे यह आत्मा परद्रव्यस्वरूप कर्मको करे तो, परिणाम-परिणामीभाव
अन्य किसी प्रकारसे न बन सकनेसे, वह (आत्मा) नियमसे तन्मय (परद्रव्यमय) हो जाये; परन्तु
वह तन्मय नहीं है, क्योंकि कोई द्रव्य अन्यद्रव्यमय हो जाये तो उस द्रव्यके नाशकी आपत्ति ( – दोष)
आ जायेगा । इसलिये आत्मा व्याप्यव्यापकभावसे परद्रव्यस्वरूप कर्मका कर्ता नहीं है ।
भावार्थ : — यदि एक द्रव्यका कर्ता दूसरा द्रव्य हो तो दोनों द्रव्य एक हो जायें, क्योंकि