Samaysar (Hindi). Gatha: 101.

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कदाचिदज्ञानेन करणादात्मापि कर्ताऽस्तु तथापि न परद्रव्यात्मककर्मकर्ता स्यात्
ज्ञानी ज्ञानस्यैव कर्ता स्यात्
जे पोग्गलदव्वाणं परिणामा होंति णाणआवरणा
ण करेदि ताणि आदा जो जाणदि सो हवदि णाणी ।।१०१।।
ये पुद्गलद्रव्याणां परिणामा भवन्ति ज्ञानावरणानि
न करोति तान्यात्मा यो जानाति स भवति ज्ञानी ।।१०१।।
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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
व्यापारको कदाचित् अज्ञानके कारण योग और उपयोगका तो आत्मा भी कर्ता (कदाचित्) भले
हो तथापि परद्रव्यस्वरूप कर्मका कर्ता तो (निमित्तरूपसे भी कदापि) नहीं है
भावार्थ :योग अर्थात् (मन-वचन-कायके निमित्तसे होनेवाला) आत्मप्रदेशोंका
परिस्पन्दन (चलन) और उपयोग अर्थात् ज्ञानका कषायोंके साथ उपयुक्त होना-जुड़ना यह
योग और उपयोग घटादिक और क्रोधादिकको निमित्त हैं, इसलिये उन्हें तो घटादिक तथा
क्रोधादिकका निमित्तकर्ता कहा जाये, परन्तु आत्माको उनका कर्ता नहीं कहा जा सकता
आत्माको संसार-अवस्थामें अज्ञानसे मात्र योग-उपयोगका कर्ता कहा जा सकता है
तात्पर्य यह है किद्रव्यदृष्टिसे कोई द्रव्य किसी अन्य द्रव्यका कर्ता नहीं है; परन्तु
पर्यायदृष्टिसे किसी द्रव्यकी पर्याय किसी समय किसी अन्य द्रव्यकी पर्यायको निमित्त होती
है, इसलिये इस अपेक्षासे एक द्रव्यका परिणाम अन्य द्रव्यके परिणामका निमित्तकर्ता कहलाता
है
परमार्थसे द्रव्य अपने ही परिणामका कर्ता है; अन्यके परिणामका अन्यद्रव्य कर्ता नहीं
होता ।।१००।।
अब यह कहते हैं कि ज्ञानी ज्ञानका ही कर्ता है :
ज्ञानावरणआदिक सभी, पुद्गलदरव परिणाम हैं
करता नहीं आत्मा उन्हें, जो जानता वह ज्ञानी है ।।१०१।।
गाथार्थ :[ये ] जो [ज्ञानावरणानि ] ज्ञानावरणादिक [पुद्गलद्रव्याणां ] पुद्गलद्रव्योंके
[परिणामाः ] परिणाम [भवन्ति ] हैं [तानि ] उन्हें [यः आत्मा ] जो आत्मा [न करोति ] नहीं
करता, परन्तु [जानाति ] जानता है [सः ] वह [ज्ञानी ] ज्ञानी [भवति ] है