Samaysar (Hindi). Gatha: 104.

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अतः स्थितः खल्वात्मा पुद्गलकर्मणामकर्ता
दव्वगुणस्स य आदा ण कुणदि पोग्गलमयम्हि कम्मम्हि
तं उभयमकुव्वंतो तम्हि कहं तस्स सो कत्ता ।।१०४।।
द्रव्यगुणस्य चात्मा न करोति पुद्गलमये कर्मणि
तदुभयमकुर्वंस्तस्मिन्कथं तस्य स कर्ता ।।१०४।।
यथा खलु मृण्मये कलशे कर्मणि मृद्द्रव्यमृद्गुणयोः स्वरसत एव वर्तमाने द्रव्यगुणान्तर-
संक्रमस्य वस्तुस्थित्यैव निषिद्धत्वादात्मानमात्मगुणं वा नाधत्ते स कलशकारः, द्रव्यान्तर-
संक्रममन्तरेणान्यस्य वस्तुनः परिणमयितुमशक्यत्वात् तदुभयं तु तस्मिन्ननादधानो न तत्त्वतस्तस्य
कर्ता प्रतिभाति, तथा पुद्गलमये ज्ञानावरणादौ कर्मणि पुद्गलद्रव्यपुद्गलगुणयोः
स्वरसत एव वर्तमाने द्रव्यगुणान्तरसंक्रमस्य विधातुमशक्यत्वादात्मद्रव्यमात्मगुणं वात्मा न खल्वाधत्ते;
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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
उपरोक्त कारणसे आत्मा वास्तवमें पुद्गलकर्मोंका अकर्ता सिद्ध हुआ, यह कहते हैं :
आत्मा करे नहिं द्रव्य-गुण पुद्गलमयी कर्मौं विषै
इन उभयको उनमें न करता, क्यों हि तत्कर्त्ता बने ? १०४।।
गाथार्थ :[आत्मा ] आत्मा [पुद्गलमये कर्मणि ] पुद्गलमय कर्ममे [द्रव्यगुणस्य
च ] द्रव्यको तथा गुणको [न करोति ] नहीं करता; [तस्मिन् ] उसमें [तद् उभयम् ] उन
दोनोंको [अकुर्वन् ] न करता हुआ [सः ] वह [तस्य कर्ता ] उसका कर्ता [कथं ] कैसे हो
सकता है ?
टीका :जैसेमिट्टीमय घटरूपी कर्म जो कि मिट्टीरूपी द्रव्यमें और मिट्टीके गुणमें
निज रससे ही वर्तता है उसमें कुम्हार अपनेको या अपने गुणको डालता या मिलाता नहीं है,
क्योंकि (किसी वस्तुका) द्रव्यान्तर या गुणान्तररूपमें संक्रमण होनेका वस्तुस्थितिसे ही निषेध
है; द्रव्यान्तररूपमें (अन्यद्रव्यरूपमें) संक्रमण प्राप्त किये बिना अन्य वस्तुको परिणमित करना
अशक्य होनेसे, अपने द्रव्य और गुण
दोनोंको उस घटरूपी कर्ममें न डालता हुआ वह कुम्हार
परमार्थसे उसका कर्ता प्रतिभासित नहीं होता; इसीप्रकारपुद्गलमय ज्ञानावरणादि कर्म जो कि
पुद्गलद्रव्यमें और पुद्गलके गुणमें निज रससे ही वर्तता है उसमें आत्मा अपने द्रव्यको या अपने
गुणको वास्तवमें डालता या मिलाता नहीं है, क्योंकि (किसी वस्तुका) द्रव्यान्तर या
गुणान्तररूपमें संक्रमण होना अशक्य है; द्रव्यान्तररूपमें संक्रमण प्राप्त किये बिना अन्य वस्तुको