तत्त्वतस्तस्य कर्ता प्रतिभायात् ? ततः स्थितः खल्वात्मा पुद्गलकर्मणामकर्ता ।
इह खलु पौद्गलिककर्मणः स्वभावादनिमित्तभूतेऽप्यात्मन्यनादेरज्ञानात्तन्निमित्तभूतेना- ज्ञानभावेन परिणमनान्निमित्तीभूते सति सम्पद्यमानत्वात् पौद्गलिकं कर्मात्मना कृतमिति निर्विकल्प- विज्ञानघनभ्रष्टानां विकल्पपरायणानां परेषामस्ति विकल्पः । स तूपचार एव, न तु परमार्थः । परिणमित करना अशक्य होनेसे, अपने द्रव्य और गुण – दोनोंको ज्ञानावरणादि कर्ममें न डालता हुआ वह आत्मा परमार्थसे उसका कर्ता कैसे हो सकता है ? (कभी नहीं हो सकता ।) इसलिये वास्तवमें आत्मा पुद्गलकर्मोंका अकर्ता सिद्ध हुआ ।।१०४।।
इसलिये इसके अतिरिक्त अन्य — अर्थात् आत्माको पुद्गलकर्मोंका कर्ता कहना सो — उपचार है, अब यह कहते हैं : —
गाथार्थ : — [जीवे ] जीव [हेतुभूते ] निमित्तभूत होने पर [बन्धस्य तु ] कर्मबन्धका [परिणामम् ] परिणाम होता हुआ [दृष्टवा ] देखकर, ‘[जीवेन ] जीवने [कर्म कृतं ] कर्म किया’ इसप्रकार [उपचारमात्रेण ] उपचारमात्रसे [भण्यते ] कहा जाता है ।
टीका : — इस लोकमें वास्तवमें आत्मा स्वभावसे पौद्गलिक कर्मको निमित्तभूत न होने पर भी, अनादि अज्ञानके कारण पौद्गलिक कर्मको निमित्तरूप होनेवाले ऐसे अज्ञानभावरूप परिणमता होनेसे निमित्तभूत होने पर, पौद्गलिक कर्म उत्पन्न होता है, इसलिये ‘पौद्गलिक कर्म आत्माने किया’ ऐसा निर्विकल्प विज्ञानघनस्वभावसे भ्रष्ट, विकल्पपरायण अज्ञानियोंका विकल्प है; वह विकल्प उपचार ही है, परमार्थ नहीं ।