Samaysar (Hindi). Gatha: 126 Kalash: 65.

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(उपजाति)
स्थितेति जीवस्य निरन्तराया
स्वभावभूता परिणामशक्तिः
तस्यां स्थितायां स करोति भावं
यं स्वस्य तस्यैव भवेत्स कर्ता
।।६५।।
तथा हि
जं कुणदि भावमादा कत्ता सो होदि तस्स कम्मस्स
णाणिस्स स णाणमओ अण्णाणमओ अणाणिस्स ।।१२६।।
यं करोति भावमात्मा कर्ता स भवति तस्य कर्मणः
ज्ञानिनः स ज्ञानमयोऽज्ञानमयोऽज्ञानिनः ।।१२६।।
एवमयमात्मा स्वयमेव परिणामस्वभावोऽपि यमेव भावमात्मनः करोति तस्यैव
२०२
समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
अब इसी अर्थका कलशरूप काव्य कहते हैं :
श्लोकार्थ :[इति ] इसप्रकार [जीवस्य ] जीवकी [स्वभावभूता परिणामशक्तिः ]
स्वभावभूत परिणमनशक्ति [निरन्तराया स्थिता ] निर्विघ्न सिद्ध हुई [तस्यां स्थितायां ] यह सिद्ध
होने पर, [सः स्वस्य यं भावं करोति ] जीव अपने जिस भावको क रता है [तस्य एव सः कर्ता
भवेत् ]
उसका वह क र्ता होता है
भावार्थ :जीव भी परिणामी है; इसलिये स्वयं जिस भावरूप परिणमता है उसका कर्ता
होता है ।६५।
अब यह कहते हैं कि ज्ञानी ज्ञानमय भावका और अज्ञानी अज्ञानमय भावका कर्ता है :
जिस भावको आत्मा करे, कर्ता बने उस कर्मका
वह ज्ञानमय है ज्ञानिका, अज्ञानमय अज्ञानिका ।।१२६।।
गाथार्थ :[आत्मा ] आत्मा [यं भावम् ] जिस भावको [करोति ] करता है [तस्य
कर्मणः ] उस भावरूप क र्मका [सः ] वह [कर्ता ] क र्ता [भवति ] होता है; [ज्ञानिनः ] ज्ञानीको
तो [सः ] वह भाव [ज्ञानमयः ] ज्ञानमय है और [अज्ञानिनः ] अज्ञानीको [अज्ञानमयः ]
अज्ञानमय है
टीका :इसप्रकार यह आत्मा स्वयमेव परिणामस्वभाववाला है तथापि अपने जिस