Samaysar (Hindi). Kalash: 67.

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अज्ञानमयाद्भावादज्ञानश्चैव जायते भावः
यस्मात्तस्माद्भावा अज्ञानमया अज्ञानिनः ।।१२९।।
यतो ह्यज्ञानमयाद्भावाद्यः कश्चनापि भावो भवति स सर्वोऽप्यज्ञानमयत्वमनति-
वर्तमानोऽज्ञानमय एव स्यात्, ततः सर्वे एवाज्ञानमया अज्ञानिनो भावाः यतश्च ज्ञानमयाद्भावाद्यः
कश्चनापि भावो भवति स सर्वोऽपि ज्ञानमयत्वमनतिवर्तमानो ज्ञानमय एव स्यात्, ततः सर्वे
एव ज्ञानमया ज्ञानिनो भावाः
(अनुष्टुभ्)
ज्ञानिनो ज्ञाननिर्वृत्ताः सर्वे भावा भवन्ति हि
सर्वेऽप्यज्ञाननिर्वृत्ता भवन्त्यज्ञानिनस्तु ते ।।६७।।
अथैतदेव दृष्टान्तेन समर्थयते
२०६
समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
[भावः ] भाव [जायते ] उत्पन्न होता है, [तस्मात् ] इसलिये [अज्ञानिनः ] अज्ञानीके [भावाः ]
भाव [अज्ञानमयाः ] अज्ञानमय ही होते हैं
टीका :वास्तवमें अज्ञानमय भावमेंसे जो कोई भाव होता है वह सब ही
अज्ञानमयताका उल्लंघन न करता हुआ अज्ञानमय ही होता है, इसलिये अज्ञानीके सभी भाव
अज्ञानमय होते हैं
और ज्ञानमय भावमेंसे जो कोई भी भाव होता है वह सब ही ज्ञानमयताका
उल्लंघन न करता हुआ ज्ञानमय ही होता है, इसलिये ज्ञानीके सभी भाव ज्ञानमय होते हैं
भावार्थ :ज्ञानीका परिणमन अज्ञानीके परिणमनसे भिन्न ही प्रकारका है अज्ञानीका
परिणमन अज्ञानमय और ज्ञानीका ज्ञानमय है; इसलिये अज्ञानीके क्रोध, मान, व्रत, तप
इत्यादि समस्त भाव अज्ञानजातिका उल्लंघन न करनेसे अज्ञानमय ही हैं और ज्ञानीके समस्त
भाव ज्ञानजातिका उल्लंघन न करनेसे ज्ञानमय ही हैं
।।१२८-१२९।।
अब इसी अर्थका कलशरूप काव्य कहते हैं :
श्लोकार्थ :[ज्ञानिनः ] ज्ञानीके [सर्वे भावाः ] समस्त भाव [ज्ञाननिर्वृत्ताः हि ]
ज्ञानसे रचित [भवन्ति ] होते हैं [तु ] और [अज्ञानिनः ] अज्ञानीके [सर्वे अपि ते ] समस्त
भाव [अज्ञाननिर्वृत्ताः ] अज्ञानसे रचित [भवन्ति ] होते हैं
।६७।
अब इसी अर्थको दृष्टान्तसे दृढ़ करते हैं :