Samaysar (Hindi). Gatha: 130-131.

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कहानजैनशास्त्रमाला ]
कर्ता-कर्म अधिकार
२०७
कणयमया भावादो जायंते कुंडलादओ भावा
अयमयया भावादो जह जायंते दु कडयादी ।।१३०।।
अण्णाणमया भावा अणाणिणो बहुविहा वि जायंते
णाणिस्स दु णाणमया सव्वे भावा तहा होंति ।।१३१।।
कनकमयाद्भावाज्जायन्ते कुण्डलादयो भावाः
अयोमयकाद्भावाद्यथा जायन्ते तु कटकादयः ।।१३०।।
अज्ञानमया भावा अज्ञानिनो बहुविधा अपि जायन्ते
ज्ञानिनस्तु ज्ञानमयाः सर्वे भावास्तथा भवन्ति ।।१३१।।

यथा खलु पुद्गलस्य स्वयं परिणामस्वभावत्वे सत्यपि, कारणानुविधायित्वात् कार्याणां, जाम्बूनदमयाद्भावाज्जाम्बूनदजातिमनतिवर्तमाना जाम्बूनदकुण्डलादय एव भावा

ज्यों कनकमय को भावमेंसे कुण्डलादिक ऊपजे,
पर लोहमय को भावसे कटकादि भावों नीपजे;
।।१३०।।
त्यों भाव बहुविध ऊपजे अज्ञानमय अज्ञानिके,
पर ज्ञानिके तो सर्व भावहि ज्ञानमय निश्चय बने
।।१३१।।

गाथार्थ :[यथा ] जैसे [कनकमयात् भावात् ] स्वर्णमय भावमेंसे [कुण्डलादयः भावाः ] स्वर्णमय कुण्डल इत्यादिे भाव [जायन्ते ] होते हैं [तु ] और [अयोमयकात् भावात् ] लोहमय भावमेंसे [कटकादयः ] लोहमय क ड़ा इत्यादिे भाव [जायन्ते ] होते हैं, [तथा ] उसीप्रकार [अज्ञानिनः ] अज्ञानीके (अज्ञानमय भावमेंसे) [बहुविधाः अपि ] अनेक प्रकारके [अज्ञानमयाः भावाः ] अज्ञानमय भाव [जायन्ते ] होते हैं [तु ] और [ज्ञानिनः ] ज्ञानीके (ज्ञानमय भावमेंसे) [सर्वे ] सभी [ज्ञानमयाः भावाः ] ज्ञानमय भाव [भवन्ति ] होते हैं

टीका :जैसे पुद्गल स्वयं परिणामस्वभावी होने पर भी, कारण जैसे कार्य होनेसे, सुवर्णमय भावमेंसे सुवर्णजातिका उल्लंघन न करते हुए सुवर्णमय कुण्डल आदि भाव ही होते हैं, किन्तु लौहमय कड़ा इत्यादि भाव नहीं होते, और लौहमय भावमेंसे, लौहजातिका उल्लंघन न करते हुए लौहमय कड़ा इत्यादि भाव ही होते हैं, किन्तु सुवर्णमय कुण्डल आदि भाव नहीं होते; इसीप्रकार जीव स्वयं परिणामस्वभावी होने पर भी, कारण जैसे ही कार्य होनेसे, अज्ञानीकेजो