Samaysar (Hindi).

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इह खलु केचिन्निखिलकर्मपक्षक्षयसम्भावितात्मलाभं मोक्षमभिलषन्तोऽपि, तद्धेतुभूतं
सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रस्वभावपरमार्थभूतज्ञानभवनमात्रमैकाग्य्रालक्षणं समयसारभूतं सामायिकं
प्रतिज्ञायापि, दुरन्तकर्मचक्रोत्तरणक्लीबतया परमार्थभूतज्ञानभवनमात्रं सामायिकमात्मस्वभाव-
मलभमानाः, प्रतिनिवृत्तस्थूलतमसंक्लेशपरिणामकर्मतया प्रवृत्तमानस्थूलतमविशुद्धपरिणामकर्माणः,
कर्मानुभवगुरुलाघवप्रतिपत्तिमात्रसन्तुष्टचेतसः, स्थूललक्ष्यतया सकलं कर्मकाण्डमनुन्मूलयन्तः,
स्वयमज्ञानादशुभकर्म केवलं बन्धहेतुमध्यास्य च, व्रतनियमशीलतपःप्रभृतिशुभकर्म बन्धहेतुमप्य-
जानन्तो, मोक्षहेतुमभ्युपगच्छन्ति
भवन = होना; परिणमन
२४८
समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
हेतुको [अजानन्तः ] न जानते हुए[संसारगमनहेतुम् अपि ] संसारगमनका हेतु होने पर भी
[अज्ञानेन ] अज्ञानसे [पुण्यम् ] पुण्यको (मोक्षका हेतु समझकर) [इच्छन्ति ] चाहते हैं
टीका :समस्त कर्मके पक्षका नाश करनेसे उत्पन्न होनेवाला जो आत्मलाभ (निज
स्वरूपकी प्राप्ति) उस आत्मलाभस्वरूप मोक्षको इस जगतमें कितने ही जीव चाहते हुए भी,
मोक्षके कारणभूत सामायिककी
जो (सामायिक) सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रस्वभाववाले
परमार्थभूत ज्ञानके भवनमात्र है, एकाग्रतालक्षणयुक्त है और समयसारस्वरूप है उसकीप्रतिज्ञा
लेकर भी, दुरन्त कर्मचक्रको पार करनेकी नपुंसकताके (-असमर्थताके) कारण परमार्थभूत ज्ञानके
भवनमात्र जो सामायिक उस सामायिकस्वरूप आत्मस्वभावको न प्राप्त होते हुए, जिनके अत्यन्त
स्थूल संक्लेशपरिणामरूप कर्म निवृत्त हुए हैं और अत्यन्त स्थूल विशुद्धपरिणामरूप कर्म प्रवर्त रहे
हैं ऐसे वे, कर्मके अनुभवके गुरुत्व-लघुत्वकी प्राप्तिमात्रसे ही सन्तुष्ट चित्त होते हुए भी (स्वयं)
स्थूल लक्ष्यवाले होकर (संक्लेशपरिणामको छोड़ते हुए भी) समस्त कर्मकाण्डको मूलसे नहीं
उखाड़ते
इसप्रकार वे, स्वयं अपने अज्ञानसे केवल अशुभ कर्मको ही बन्धका कारण मानकर,
व्रत, नियम, शील, तप इत्यादि शुभ कर्म भी बन्धके कारण होने पर भी उन्हें बन्धके कारण न
जानते हुए, मोक्षके कारणरूपमें अंगीकार करते हैं
मोक्षके कारणरूपमें उनका आश्रय करते हैं
भावार्थ :कितने ही अज्ञानीजन दीक्षा लेते समय सामायिककी प्रतिज्ञा लेते हैं, परन्तु
सूक्ष्म ऐसे आत्मस्वभावकी श्रद्धा, लक्ष तथा अनुभव न कर सकनेसे, स्थूल लक्ष्यवाले वे जीव
स्थूल संक्लेशपरिणामोंको छोड़कर ऐसे ही स्थूल विशुद्धपरिणामोंमें (शुभ परिणामोंमें) राचते हैं
(संक्लेशपरिणाम तथा विशुद्धपरिणाम दोनों अत्यन्त स्थूल हैं; आत्मस्वभाव ही सूक्ष्म है )
इसप्रकार वेयद्यपि वास्तविकतया सर्वकर्मरहित आत्मस्वभावका अनुभवन ही मोक्षका कारण
है तथापिकर्मानुभवके अल्पबहुत्वको ही बन्ध-मोक्षका कारण मानकर, व्रत, नियम, शील, तप