मोक्षहेतुः किल सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि । तत्र सम्यग्दर्शनं तु जीवादिश्रद्धानस्वभावेन ज्ञानस्य भवनम् । जीवादिज्ञानस्वभावेन ज्ञानस्य भवनं ज्ञानम् । रागादिपरिहरणस्वभावेन ज्ञानस्य भवनं चारित्रम् । तदेवं सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राण्येकमेव ज्ञानस्य भवनमायातम् । ततो ज्ञानमेव परमार्थमोक्षहेतुः । इत्यादि शुभ कर्मोंका मोक्षके हेतुके रूपमें आश्रय करते हैं ।।१५४।।
गाथार्थ : — [जीवादिश्रद्धानं ] जीवादि पदार्थोंका श्रद्धान [सम्यक्त्वं ] सम्यक्त्व है, [तेषां अधिगमः ] उन जीवादि पदार्थोंका अधिगम [ज्ञानम् ] ज्ञान है और [रागादिपरिहरणं ] रागादिका त्याग [चरणं ] चारित्र है; — [एषः तु ] यही [मोक्षपथः ] मोक्षका मार्ग है ।
टीका : — मोक्षका कारण वास्तवमें सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र है । उसमें, सम्यग्दर्शन तो जीवादि पदार्थोंके श्रद्धानस्वभावरूप ज्ञानका होना – परिणमन करना है; जीवादि पदार्थोंके ज्ञानस्वभावरूप ज्ञानका होना — परिणमन करना सो ज्ञान है; रागादिके त्यागस्वभावरूप ज्ञानका होना — परिणमन करना सो चारित्र है । अतः इसप्रकार यह फलित हुआ कि सम्यग्दर्शन-ज्ञान- चारित्र ये तीनों एक ज्ञानका ही भवन ( – परिणमन) है । इसलिये ज्ञान ही मोक्षका परमार्थ (वास्तविक) कारण है ।
भावार्थ : — आत्माका असाधारण स्वरूप ज्ञान ही है । और इस प्रकरणमें ज्ञानको ही प्रधान करके विवेचन किया है । इसलिये ‘सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र — इन तीनों स्वरूप ज्ञान ही परिणमित होता है’ यह कहकर ज्ञानको ही मोक्षका कारण कहा है । ज्ञान है वह अभेद विवक्षामें