(अनुष्टुभ्)
वृत्तं ज्ञानस्वभावेन ज्ञानस्य भवनं सदा ।
एकद्रव्यस्वभावत्वान्मोक्षहेतुस्तदेव तत् ।।१०६।।
(अनुष्टुभ्)
वृत्तं कर्मस्वभावेन ज्ञानस्य भवनं न हि ।
द्रव्यान्तरस्वभावत्वान्मोक्षहेतुर्न कर्म तत् ।।१०७।।
(अनुष्टुभ्)
मोक्षहेतुतिरोधानाद्बन्धत्वात्स्वयमेव च ।
मोक्षहेतुतिरोधायिभावत्वात्तन्निषिध्यते ।।१०८।।
अथ कर्मणो मोक्षहेतुतिरोधानकरणं साधयति —
कहानजैनशास्त्रमाला ]
पुण्य-पाप अधिकार
२५१
आत्माके मोक्षका कारण नहीं होता । ज्ञान आत्मस्वभावी है, इसलिये उसके भवनसे आत्माका
भवन बनता है; अतः वह आत्माके मोक्षका कारण होता है । इसप्रकार ज्ञान ही वास्तविक
मोक्षहेतु है ।।१५६।।
अब इसी अर्थके कलशरूप दो श्लोक कहते हैं : —
श्लोकार्थ : — [एक द्रव्यस्वभावत्वात् ] ज्ञान एक द्रव्यस्वभावी ( – जीवस्वभावी – ) होनेसे
[ज्ञानस्वभावेन ] ज्ञानके स्वभावसे [सदा ] सदा [ज्ञानस्य भवनं वृत्तं ] ज्ञानका भवन बनता है;
[तत् ] इसलिये [तद् एव मोक्षहेतुः ] ज्ञान ही मोक्षका कारण है ।१०६।
श्लोकार्थ : — [द्रव्यान्तरस्वभावत्वात् ] क र्म अन्यद्रव्यस्वभावी ( – पुद्गलस्वभावी – )
होनेसे [क र्मस्वभावेन ] क र्मके स्वभावसे [ज्ञानस्य भवनं न हि वृत्तं ] ज्ञानका भवन नहीं बनता;
[तत् ] इसलिये [क र्म मोक्षहेतुः न ] क र्म मोक्षका कारण नहीं है ।१०७।
अब आगामी कथनका सूचक श्लोक कहते हैं : —
श्लोकार्थ : — [मोक्षहेतुतिरोधानात् ] क र्म मोक्षके कारणका तिरोधान क रनेवाला है, और
[स्वयम् एव बन्धत्वात् ] वह स्वयं ही बन्धस्वरूप है [च ] तथा [मोक्षहेतुतिरोधायिभावत्वात् ]
वह मोक्षके कारणका तिरोधायिभावस्वरूप (तिरोधानकर्ता) है, इसीलिये [तत् निषिध्यते ] उसका
निषेध किया गया है ।१०८।
अब पहले, यह सिद्ध करते हैं कि कर्म मोक्षके कारणका तिरोधान करनेवाला है : —