अथ कर्मणो मोक्षहेतुतिरोधानकरणं साधयति — आत्माके मोक्षका कारण नहीं होता । ज्ञान आत्मस्वभावी है, इसलिये उसके भवनसे आत्माका भवन बनता है; अतः वह आत्माके मोक्षका कारण होता है । इसप्रकार ज्ञान ही वास्तविक मोक्षहेतु है ।।१५६।।
श्लोकार्थ : — [एक द्रव्यस्वभावत्वात् ] ज्ञान एक ड्डद्रव्यस्वभावी ( – जीवस्वभावी – ) होनेसे [ज्ञानस्वभावेन ] ज्ञानके स्वभावसे [सदा ] सदा [ज्ञानस्य भवनं वृत्तं ] ज्ञानका भवन बनता है; [तत् ] इसलिये [तद् एव मोक्षहेतुः ] ज्ञान ही मोक्षका कारण है ।१०६।
श्लोकार्थ : — [द्रव्यान्तरस्वभावत्वात् ] क र्म अन्यद्रव्यस्वभावी ( – पुद्गलस्वभावी – ) होनेसे [क र्मस्वभावेन ] क र्मके स्वभावसे [ज्ञानस्य भवनं न हि वृत्तं ] ज्ञानका भवन नहीं बनता; [तत् ] इसलिये [क र्म मोक्षहेतुः न ] क र्म मोक्षका कारण नहीं है ।१०७।
श्लोकार्थ : — [मोक्षहेतुतिरोधानात् ] क र्म मोक्षके कारणका तिरोधान क रनेवाला है, और [स्वयम् एव बन्धत्वात् ] वह स्वयं ही बन्धस्वरूप है [च ] तथा [मोक्षहेतुतिरोधायिभावत्वात् ] वह मोक्षके कारणका तिरोधायिभावस्वरूप (तिरोधानकर्ता) है, इसीलिये [तत् निषिध्यते ] उसका निषेध किया गया है ।१०८।