ज्ञानस्य सम्यक्त्वं मोक्षहेतुः स्वभावः परभावेन मिथ्यात्वनाम्ना कर्ममलेनावच्छन्नत्वात्ति-
रोधीयते, परभावभूतमलावच्छन्नश्वेतवस्त्रस्वभावभूतश्वेतस्वभाववत् । ज्ञानस्य ज्ञानं मोक्षहेतुः
स्वभावः परभावेनाज्ञाननाम्ना कर्ममलेनावच्छन्नत्वात्तिरोधीयते, परभावभूतमलावच्छन्नश्वेत-
वस्त्रस्वभावभूतश्वेतस्वभाववत् । ज्ञानस्य चारित्रं मोक्षहेतुः स्वभावः परभावेन कषायनाम्ना
कर्ममलेनावच्छन्नत्वात्तिरोधीयते, परभावभूतमलावच्छन्नश्वेतवस्त्रस्वभावभूतश्वेतस्वभाववत् । अतो
मोक्षहेतुतिरोधानकरणात् कर्म प्रतिषिद्धम् ।
अथ कर्मणः स्वयं बन्धत्वं साधयति —
कहानजैनशास्त्रमाला ]
पुण्य-पाप अधिकार
२५३
होता हुआ [नश्यति ] नाशको प्राप्त होता हैै — तिरोभूत हो जाता है, [तथा ] उसीप्रकार
[अज्ञानमलावच्छन्नं ] अज्ञानरूपी मैलसे लिप्त होता हुआ — व्याप्त होता हुआ [ज्ञानं भवति ] ज्ञान
तिरोभूत हो जाता है [ज्ञातव्यम् ] ऐसा जानना चाहिये । [यथा ] जैसे [वस्त्रस्य ] वस्त्रका
[श्वेतभावः ] श्वेतभाव [मलमेलनासक्तः ] मैलके मिलनेसे लिप्त होता हुआ [नश्यति ] नाशको प्राप्त
होता है — तिरोभूत हो जाता है, [तथा ] उसीप्रकार [क षायमलावच्छन्नं ] क षायरूपी मेलसे लिप्त
होता हुआ – व्याप्त होता हुआ [चारित्रम् अपि ] चारित्र भी तिरोभूत हो जाता है [ज्ञातव्यम् ] ऐसा
जानना चाहिए ।
टीका : — ज्ञानका सम्यक्त्व जो कि मोक्षका कारणरूप स्वभाव है वह, परभावस्वरूप
मिथ्यात्व नामक कर्मरूपी मैलके द्वारा व्याप्त होनेसे, तिरोभूत हो जाता है — जैसे परभावस्वरूप
मैलसे व्याप्त हुआ श्वेत वस्त्रका स्वभावभूत श्वेतस्वभाव तिरोभूत हो जाता है । ज्ञानका ज्ञान जो
कि मोक्षका कारणरूप स्वभाव है वह, परभावस्वरूप अज्ञान नामक कर्ममलके द्वारा व्याप्त होनेसे
तिरोभूत हो जाता है — जैसे परभावस्वरूप मैलसे व्याप्त हुआ श्वेत वस्त्रका स्वभावभूत श्वेतस्वभाव
तिरोभूत हो जाता है । ज्ञानका चारित्र जो कि मोक्षका कारणरूप स्वभाव है वह, परभावस्वरूप
कषाय नामक कर्ममलके द्वारा व्याप्त होनेसे तिरोभूत हो जाता है — जैसे परभावस्वरूप मैलसे व्याप्त
हुआ श्वेत वस्त्रका स्वभावभूत श्वेतस्वभाव तिरोभूत हो जाता है । इसलिये मोक्षके कारणका
( – सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्रका – ) तिरोधान करनेवाला होनेसे कर्मका निषेध किया गया है ।
भावार्थ : — सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र मोक्षमार्ग है । ज्ञानका सम्यक्त्वरूप परिणमन
मिथ्यात्वकर्मसे तिरोभूत होता है; ज्ञानका ज्ञानरूप परिणमन अज्ञानकर्मसे तिरोभूत होता है; और
ज्ञानका चारित्ररूप परिणमन कषायकर्मसे तिरोभूत होता है । इसप्रकार मोक्षके कारणभावोंको कर्म
तिरोभूत करता है, इसलिये उसका निषेध किया गया है ।।१५७ से १५९।।
अब, यह सिद्ध करते हैं कि कर्म स्वयं ही बन्धस्वरूप है : —