यदा तु शुद्धनयात् परिहीणो भवति ज्ञानी तदा तस्य रागादिसद्भावात्, पूर्वबद्धाः द्रव्यप्रत्ययाः, स्वस्य ❃हेतुत्वहेतुसद्भावे हेतुमद्भावस्यानिवार्यत्वात्, ज्ञानावरणादिभावैः
गाथार्थ : — [यथा ] जैसे [पुरुषेण ] पुरुषके द्वारा [गृहीतः ] ग्रहाण किया हुआ [आहारः ] जो आहार है [सः ] वह [उदराग्निसंयुक्तः ] उदराग्निसे संयुक्त होता हुआ [अनेक विधम् ] अनेक प्रकार [मांसवसारुधिरादीन् ] मांस, चर्बी, रुधिर आदि [भावान् ] भावरूप [परिणमति ] परिणमन करता है, [तथा तु ] इसीप्रकार [ज्ञानिनः ] ज्ञानीके [पूर्वं बद्धाः ] पूर्वबद्ध [ये प्रत्ययाः ] जो द्रव्यास्रव हैं [ते ] वे [बहुविक ल्पम् ] अनेक प्रकारके [क र्म ] क र्म [बध्नन्ति ] बांधते हैं; — [ते जीवाः ] ऐसे जीव [नयपरिहीनाः तु ] शुद्धनयसे च्युत हैं । (ज्ञानी शुद्धनयसे च्युत होवे तो उसके क र्म बँधते हैं ।)
टीका : — जब ज्ञानी शुद्धनयसे च्युत हो तब उसके रागादिभावोंका सद्भाव होता है इसलिये, पूर्वबद्ध द्रव्यप्रत्यय, अपने ( – द्रव्यप्रत्ययोंके) कर्मबन्धके हेतुत्वके हेतुका सद्भाव होने ❃ रागादिसद्भावे ।