Samaysar (Hindi). Gatha: 179-180.

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जह पुरिसेणाहारो गहिदो परिणमदि सो अणेयविहं
मंसवसारुहिरादी भावे उदरग्गिसंजुत्तो ।।१७९।।
तह णाणिस्स दु पुव्वं जे बद्धा पच्चया बहुवियप्पं
बज्झंते कम्मं ते णयपरिहीणा दु ते जीवा ।।१८०।।
यथा पुरुषेणाहारो गृहीतः परिणमति सोऽनेकविधम्
मांसवसारुधिरादीन् भावान् उदराग्निसंयुक्तः ।।१७९।।
तथा ज्ञानिनस्तु पूर्वं ये बद्धाः प्रत्यया बहुविकल्पम्
बध्नन्ति कर्म ते नयपरिहीनास्तु ते जीवाः ।।१८०।।
यदा तु शुद्धनयात् परिहीणो भवति ज्ञानी तदा तस्य रागादिसद्भावात्,
पूर्वबद्धाः द्रव्यप्रत्ययाः, स्वस्य हेतुत्वहेतुसद्भावे हेतुमद्भावस्यानिवार्यत्वात्, ज्ञानावरणादिभावैः
कहानजैनशास्त्रमाला ]
आस्रव अधिकार
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अब इसी अर्थको दृष्टान्त द्वारा दृढ़ करते हैं :
जनसे ग्रहित आहार ज्यों, उदराग्निके संयोगसे
बहुभेद मांस, वसा अरु, रुधिरादि भावों परिणमे ।।१७९।।
त्यों ज्ञानीके भी पूर्वकालनिबद्ध जो प्रत्यय रहे
बहुभेद बांधे कर्म, जो जीव शुद्धनयपरिच्युत बने ।।१८०।।
गाथार्थ :[यथा ] जैसे [पुरुषेण ] पुरुषके द्वारा [गृहीतः ] ग्रहाण किया हुआ
[आहारः ] जो आहार है [सः ] वह [उदराग्निसंयुक्तः ] उदराग्निसे संयुक्त होता हुआ
[अनेक विधम् ] अनेक प्रकार [मांसवसारुधिरादीन् ] मांस, चर्बी, रुधिर आदि [भावान् ] भावरूप
[परिणमति ] परिणमन करता है, [तथा तु ] इसीप्रकार [ज्ञानिनः ] ज्ञानीके [पूर्वं बद्धाः ] पूर्वबद्ध
[ये प्रत्ययाः ] जो द्रव्यास्रव हैं [ते ] वे [बहुविक ल्पम् ] अनेक प्रकारके [क र्म ] क र्म [बध्नन्ति ]
बांधते हैं;
[ते जीवाः ] ऐसे जीव [नयपरिहीनाः तु ] शुद्धनयसे च्युत हैं (ज्ञानी शुद्धनयसे च्युत
होवे तो उसके क र्म बँधते हैं )
टीका :जब ज्ञानी शुद्धनयसे च्युत हो तब उसके रागादिभावोंका सद्भाव होता है
इसलिये, पूर्वबद्ध द्रव्यप्रत्यय, अपने (द्रव्यप्रत्ययोंके) कर्मबन्धके हेतुत्वके हेतुका सद्भाव होने
रागादिसद्भावे