Samaysar (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


Page 287 of 642
PDF/HTML Page 320 of 675

 

background image
अष्टविकल्पे कर्मणि नोकर्मणि चापि नास्त्युपयोगः
उपयोगे च कर्म नोकर्म चापि नो अस्ति ।।१८२।।
एतत्त्वविपरीतं ज्ञानं यदा तु भवति जीवस्य
तदा न किञ्चित्करोति भावमुपयोगशुद्धात्मा ।।१८३।।
न खल्वेकस्य द्वितीयमस्ति, द्वयोर्भिन्नप्रदेशत्वेनैकसत्तानुपपत्तेः तदसत्त्वे च तेन
सहाधाराधेयसम्बन्धोऽपि नास्त्येव ततः स्वरूपप्रतिष्ठत्वलक्षण एवाधाराधेयसम्बन्धोऽवतिष्ठते तेन
ज्ञानं जानत्तायां स्वरूपे प्रतिष्ठितं, जानत्ताया ज्ञानादपृथग्भूतत्वात्, ज्ञाने एव स्यात् क्रोधादीनि
क्रुध्यत्तादौ स्वरूपे प्रतिष्ठितानि, क्रुध्यत्तादेः क्रोधादिभ्योऽपृथग्भूतत्वात्, क्रोधादिष्वेव स्युः
पुनः क्रोधादिषु कर्मणि नोकर्मणि वा ज्ञानमस्ति, न च ज्ञाने क्रोधादयः कर्म नोकर्म वा सन्ति,
कहानजैनशास्त्रमाला ]
संवर अधिकार
२८७
[अष्टविक ल्पे क र्मणि ] आठ प्रकारके क र्मोंमें [च अपि ] और [नोक र्मणि ] नोक र्ममें [उपयोगः ]
उपयोग [नास्ति ] नहीं है [च ] और [उपयोगे ] उपयोगमें [क र्म ] क र्म [च अपि ] तथा
[नोक र्म ] नोक र्म [नो अस्ति ] नहीं है
[एतत् तु ] ऐसा [अविपरीतं ] अविपरीत [ज्ञानं ] ज्ञान
[यदा तु ] जब [जीवस्य ] जीवके [भवति ] होता है, [तदा ] तब [उपयोगशुद्धात्मा ] वह
उपयोगस्वरूप शुद्धात्मा [कि ञ्चित् भावम् ] उपयोगके अतिरिक्त अन्य किसी भी भावको [न
क रोति ]
नहीं क रता
टीका :वास्तवमें एक वस्तुकी दूसरी वस्तु नहीं है, (अर्थात् एक वस्तु दूसरी वस्तुके
साथ कोई सम्बन्ध नहीं रखती) क्योंकि दोनोंके प्रदेश भिन्न हैं, इसलिये उनमें एक सत्ताकी
अनुपपत्ति है (अर्थात् दोनोंकी सत्ताऐं भिन्न-भिन्न हैं); और इसप्रकार जब कि एक वस्तुकी दूसरी
वस्तु नहीं है तब एकके साथ दूसरीको आधारआधेयसम्बन्ध भी है ही नहीं
इसलिये (प्रत्येक
वस्तुका) अपने स्वरूपमें प्रतिष्ठारूप (दृढ़तापूर्वक रहनेरूप) ही आधारआधेयसम्बन्ध है इसलिये
ज्ञान जो कि जाननक्रियारूप अपने स्वरूपमें प्रतिष्ठित है वह, जाननक्रियाका ज्ञानसे अभिन्नत्व
होनेसे, ज्ञानमें ही है; क्रोधादिक जो कि क्रोधादिक्रियारूप अपने स्वरूपमें प्रतिष्ठित है वह,
क्रोधादिक्रियाका क्रोधादिसे अभिन्नत्व होनेके कारण, क्रोधादिकमें ही है
(ज्ञानका स्वरूप
जाननक्रिया है, इसलिये ज्ञान आधेय है और जाननक्रिया आधार है जाननक्रिया आधार होनेसे
यह सिद्ध हुआ कि ज्ञान ही आधार है, क्योंकि जाननक्रिया और ज्ञान भिन्न नहीं हैं तात्पर्य यह
है कि ज्ञान ज्ञानमें ही है इसीप्रकार क्रोध क्रोधमें ही है ) और क्रोधादिकमें, कर्ममें या नोकर्ममें
ज्ञान नहीं है तथा ज्ञानमें क्रोधादिक, कर्म या नोकर्म नहीं हैं, क्योंकि उनके परस्पर अत्यन्त स्वरूप-
विपरीतता होनेसे (अर्थात् ज्ञानका स्वरूप और क्रोधादिक तथा कर्म-नोकर्मका स्वरूप अत्यन्त