Samaysar (Hindi). Gatha: 191-192.

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कहानजैनशास्त्रमाला ]
संवर अधिकार
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हेदुअभावे णियमा जायदि णाणिस्स आसवणिरोहो
आसवभावेण विणा जायदि कम्मस्स वि णिरोहो ।।१९१।।
कम्मस्साभावेण य णोकम्माणं पि जायदि णिरोहो
णोकम्मणिरोहेण य संसारणिरोहणं होदि ।।१९२।।
तेषां हेतवो भणिता अध्यवसानानि सर्वदर्शिभिः
मिथ्यात्वमज्ञानमविरतभावश्च योगश्च ।।१९०।।
हेत्वभावे नियमाज्जायते ज्ञानिन आस्रवनिरोधः
आस्रवभावेन विना जायते कर्मणोऽपि निरोधः ।।१९१।।
कर्मणोऽभावेन च नोकर्मणामपि जायते निरोधः
नोकर्मनिरोधेन च संसारनिरोधनं भवति ।।१९२।।
कारण अभाव जरूर आस्रवरोध ज्ञानीको बने
आस्रवभाव अभावमें, नहिं कर्मका आना बने ।।१९१।।
है कर्मके जु अभावसे, नोकर्मका रोधन बने
नोकर्मका रोधन हुए, संसारसंरोधन बने ।।१९२।।

गाथार्थ :[तेषां ] उनके (पूर्व क थित रागद्वेषमोहरूप आस्रवोंके) [हेतवः ] हेतु [सर्वदर्शिभिः ] सर्वदर्शियोंने [मिथ्यात्वम् ] मिथ्यात्व, [अज्ञानम् ] अज्ञान, [अविरतभावः च ] और अविरतभाव [योगः च ] तथा योग[अध्यवसानानि ] यह (चार) अध्यवसान [भणिताः ] क हे हैं [ज्ञानिनः ] ज्ञानीके [हेत्वभावे ] हेतुओंके अभावमें [नियमात् ] नियमसे [आस्रवनिरोधः ] आस्रवका निरोध [जायते ] होता है, [आस्रवभावेन विना ] आस्रवभावके बिना [क र्मणः अपि ] क र्मका भी [निरोधः ] निरोध [जायते ] होता है, [च ] और [क र्मणः अभावेन ] क र्मके अभावसे [नोक र्मणाम् अपि ] नोक र्मोंका भी [निरोधः ] निरोध [जायते ] होता है, [च ] और [नोक र्मनिरोधेन ] नोक र्मके निरोधसे [संसारनिरोधनं ] संसारका निरोध [भवति ] होता है

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