Samaysar (Hindi).

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सन्ति तावज्जीवस्य आत्मकर्मैकत्वाध्यासमूलानि मिथ्यात्वाज्ञानाविरतियोगलक्षणानि
अध्यवसानानि तानि रागद्वेषमोहलक्षणस्यास्रवभावस्य हेतवः आस्रवभावः कर्महेतुः कर्म
नोकर्महेतुः नोकर्म संसारहेतुः इति ततो नित्यमेवायमात्मा आत्मकर्मणोरेकत्वाध्यासेन
मिथ्यात्वाज्ञानाविरतियोगमयमात्मानमध्यवस्यति ततो रागद्वेषमोहरूपमास्रवभावं भावयति ततः
कर्म आस्रवति ततो नोकर्म भवति ततः संसारः प्रभवति यदा तु आत्मकर्मणोर्भेदविज्ञानेन
शुद्धचैतन्यचमत्कारमात्रमात्मानं उपलभते तदा मिथ्यात्वाज्ञानाविरतियोगलक्षणानां अध्यवसानानां
आस्रवभावहेतूनां भवत्यभावः
तदभावे रागद्वेषमोहरूपास्रवभावस्य भवत्यभावः तदभावे भवति
कर्माभावः तदभावेऽपि भवति नोकर्माभावः तदभावेऽपि भवति संसाराभावः इत्येष संवरक्रमः
२९८
समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
टीका :पहले तो जीवके, आत्मा और कर्मके एकत्वका अध्यास (अभिप्राय) जिनका
मूल है ऐसे मिथ्यात्व-अज्ञान-अविरति-योगस्वरूप अध्यवसान विद्यमान हैं, वे रागद्वेषमोहस्वरूप
आस्रवभावके कारण हैं; आस्रवभाव कर्मका कारण है; कर्म-नोकर्मका कारण है; और नोकर्म
संसारका कारण है
इसलियेसदा ही यह आत्मा, आत्मा और कर्मके एकत्वके अध्याससे
मिथ्यात्व-अज्ञान-अविरति-योगमय आत्माको मानता है (अर्थात् मिथ्यात्वादि अध्यवसान करता
है); ततः रागद्वेषमोहरूप आस्रवभावको भाता है, उससे कर्मास्रव होता है; उससे नोकर्म होता है;
और उससे संसार उत्पन्न होता है
किन्तु जब (वह आत्मा), आत्मा और कर्मके भेदविज्ञानके
द्वारा शुद्ध चैतन्यचमत्कारमात्र आत्माको उपलब्ध करता हैअनुभव करता है तब मिथ्यात्व,
अज्ञान, अविरति और योगस्वरूप अध्यवसान, जो कि आस्रवभावके कारण हैं उनका अभाव होता
है; अध्यवसानोंका अभाव होने पर रागद्वेषमोहरूप आस्रवभावका अभाव होता है; आस्रवभावका
अभाव होने पर कर्मका अभाव होता है; कर्मका अभाव होने पर नोकर्मका अभाव होता है; और
नोकर्मका अभाव होने पर संवरका अभाव होता है
इसप्रकार यह संवरका क्रम है
भावार्थ :जीवके जब तक आत्मा और कर्मके एकत्वका आशय हैभेदविज्ञान नहीं
है तब तक मिथ्यात्व, अज्ञान, अविरति और योगस्वरूप अध्यवसान वर्तते हैं, अध्यवसानसे
रागद्वेषमोहरूप आस्रवभाव होता है, आस्रवभावसे कर्म बँधता है, कर्मसे शरीरादि नोकर्म उत्पन्न
होता है और नोकर्मसे संसार है
परन्तु जब उसे आत्मा और कर्मका भेदविज्ञान होता है तब शुद्ध
आत्माकी उपलब्धि होनेसे मिथ्यात्वादि अध्यवसानोंका अभाव होता है, और अध्यवसानके
अभावसे रागद्वेषमोहरूप आस्रवका अभाव होता है, आस्रवके अभावसे कर्म नहीं बँधता, कर्मके
अभावसे शरीरादि नोकर्म उत्पन्न नहीं होते और नोकर्मके अभावसे संसारका अभाव होता है
इसप्रकार संवरका अनुक्रम जानना चाहिये ।।१९० से १९२।।