Samaysar (Hindi). Gatha: 210.

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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
अपरिग्गहो अणिच्छो भणिदो णाणी य णेच्छदे धम्मं
अपरिग्गहो दु धम्मस्स जाणगो तेण सो होदि ।।२१०।।
अपरिग्रहोऽनिच्छो भणितो ज्ञानी च नेच्छति धर्मम्
अपरिग्रहस्तु धर्मस्य ज्ञायकस्तेन स भवति ।।२१०।।

इच्छा परिग्रहः तस्य परिग्रहो नास्ति यस्येच्छा नास्ति इच्छा त्वज्ञानमयो भावः, अज्ञानमयो भावस्तु ज्ञानिनो नास्ति, ज्ञानिनो ज्ञानमय एव भावोऽस्ति ततो ज्ञानी अज्ञानमयस्य [सामान्यतः ] सामान्यतः [अपास्य ] छोड़कर [अधुना ] अब [स्वपरयोः अविवेकहेतुम् अज्ञानम् उज्झितुमनाः अयं ] स्व-परके अविवेकके कारणरूप अज्ञानको छोड़नेका जिसका मन है ऐसा यह [भूयः ] पुनः [तम् एव ] उसीको (परिग्रहको) [विशेषात् ] विशेषतः [परिहर्तुम् ] छोड़नेकोे [प्रवृत्तः ] प्रवृत्त हुआ है

भावार्थ :स्व-परको एकरूप जाननेका कारण अज्ञान है उस अज्ञानको सम्पूर्णतया छोड़नेके इच्छुक जीवने पहले तो परिग्रहका सामान्यतः त्याग किया और अब (आगामी गाथाओंमें) उस परिग्रहको विशेषतः (भिन्न-भिन्न नाम लेकर) छोड़ता है ।१४५।

पहले यह कहते हैं कि ज्ञानीके धर्मका (पुण्यका) परिग्रह नहीं है :
अनिच्छक कहा अपरिग्रही, नहिं पुण्य इच्छा ज्ञानिके
इससे न परिग्रहि पुण्यका वह, पुण्यका ज्ञायक रहे ।।२१०।।

गाथार्थ :[अनिच्छः ] अनिच्छकको [अपरिग्रहः ] अपरिग्रही [भणितः ] कहा है [च ] और [ज्ञानी ] ज्ञानी [धर्मम् ] धर्मको (पुण्यको) [न इच्छति ] नहीं चाहता, [तेन ] इसलिये [सः ] वह [धर्मस्य ] धर्मका [अपरिग्रहः तु ] परिग्रही नहीं है, (किन्तु) [ज्ञायकः ] (धर्मका) ज्ञायक ही [भवति ] है

टीका :इच्छा परिग्रह है उसको परिग्रह नहीं हैजिसको इच्छा नहीं है इच्छा तो अज्ञानमयभाव है और अज्ञानमय भाव ज्ञानीके नहीं होता, ज्ञानीके ज्ञानमय ही भाव होता है; इसलिये

परिग्रहम् ] स्व-परके अविवेकके कारणरूप समस्त परिग्रहको [सामान्यतः ] सामान्यतः [अपास्य ]
छोड़कर [अधुना ] अब, [अज्ञानम् उज्झितुमनाः अयं ] अज्ञानको छोड़नेका जिसका मन है ऐसा यह,
[भूयः ] फि र भी [तम् एव ] उसे ही [विशेषात् ] विशेषतः [परिहर्तुम् ] छोड़नेके लिये [प्रवृत्तः ] प्रवृत्त
हुआ है