Samaysar (Hindi). Gatha: 211.

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भावस्य इच्छाया अभावाद्धर्मं नेच्छति तेन ज्ञानिनो धर्मपरिग्रहो नास्ति ज्ञानमयस्यैकस्य
ज्ञायकभावस्य भावाद्धर्मस्य केवलं ज्ञायक एवायं स्यात्
अपरिग्गहो अणिच्छो भणिदो णाणी य णेच्छदि अधम्मं
अपरिग्गहो अधम्मस्स जाणगो तेण सो होदि ।।२११।।
अपरिग्रहोऽनिच्छो भणितो ज्ञानी च नेच्छत्यधर्मम्
अपरिग्रहोऽधर्मस्य ज्ञायकस्तेन स भवति ।।२११।।
इच्छा परिग्रहः तस्य परिग्रहो नास्ति यस्येच्छा नास्ति इच्छा त्वज्ञानमयो भावः,
अज्ञानमयो भावस्तु ज्ञानिनो नास्ति, ज्ञानिनो ज्ञानमय एव भावोऽस्ति ततो ज्ञानी अज्ञानमयस्य
भावस्य इच्छाया अभावादधर्मं नेच्छति तेन ज्ञानिनोऽधर्मपरिग्रहो नास्ति ज्ञानमयस्यैकस्य
ज्ञायकभावस्य भावादधर्मस्य केवलं ज्ञायक एवायं स्यात्
कहानजैनशास्त्रमाला ]
निर्जरा अधिकार
३३१
अज्ञानमय भाव जो इच्छा उसके अभावके कारण ज्ञानी धर्मको नहीं चाहता; इसलिये ज्ञानीके
धर्मका परिग्रह नहीं है
ज्ञानमय एक ज्ञायकभावके सद्भावके कारण यह (ज्ञानी) धर्मका केवल
ज्ञायक ही है ।।२१०।।
अब, यह कहते हैं कि ज्ञानीके अधर्मका (पापका) परिग्रह नहीं है :
अनिच्छक कहा अपरिग्रही, नहिं पाप इच्छा ज्ञानिके
इससे न परिग्रहि पापका वह, पापका ज्ञायक रहे ।।२११।।
गाथार्थ :[अनिच्छः ] अनिच्छकको [अपरिग्रहः ] अपरिग्रही [भणितः ] कहा है
[च ] और [ज्ञानी ] ज्ञानी [अधर्मम् ] अधर्मको (पापको) [न इच्छति ] नहीं चाहता, [तेन ]
इसलिये [सः ] वह [अधर्मस्य ] अधर्मका [अपरिग्रहः ] परिग्रही नहीं है, (कि न्तु) [ज्ञायकः ]
(अधर्मका) ज्ञायक ही [भवति ] है
टीका :इच्छा परिग्रह है उसको परिग्रह नहीं हैजिसको इच्छा नहीं है इच्छा तो
अज्ञानमय भाव है और अज्ञानमय भाव ज्ञानीके नहीं होता, ज्ञानीके ज्ञानमय ही भाव होता है;
इसलिये अज्ञानमय भाव जो इच्छा उसके अभावके कारण ज्ञानी अधर्मको नहीं चाहता; इसलिये
ज्ञानीके अधर्मका परिग्रह नहीं है
ज्ञानमय एक ज्ञायकभावके सद्भावके कारण यह (ज्ञानी)
अधर्मका केवल ज्ञायक ही है