Samaysar (Hindi). Gatha: 212.

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एवमेव चाधर्मपदपरिवर्तनेन रागद्वेषक्रोधमानमायालोभकर्मनोकर्ममनोवचनकायश्रोत्रचक्षु-
र्घ्राणरसनस्पर्शनसूत्राणि षोडश व्याख्येयानि अनया दिशाऽन्यान्यप्यूह्यानि
अपरिग्गहो अणिच्छो भणिदो णाणी य णेच्छदे असणं
अपरिग्गहो दु असणस्स जाणगो तेण सो होदि ।।२१२।।
अपरिग्रहोऽनिच्छो भणितो ज्ञानी च नेच्छत्यशनम्
अपरिग्रहस्त्वशनस्य ज्ञायकस्तेन स भवति ।।२१२।।
इच्छा परिग्रहः तस्य परिग्रहो नास्ति यस्येच्छा नास्ति इच्छा त्वज्ञानमयो भावः,
अज्ञानमयो भावस्तु ज्ञानिनो नास्ति, ज्ञानिनो ज्ञानमय एव भावोऽस्ति ततो ज्ञानी अज्ञानमयस्य
भावस्य इच्छाया अभावादशनं नेच्छति तेन ज्ञानिनोऽशनपरिग्रहो नास्ति ज्ञानमयस्यैकस्य
ज्ञायकभावस्य भावादशनस्य केवलं ज्ञायक एवायं स्यात्
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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
इसीप्रकार गाथामें ‘अधर्म’ शब्द बदलकर उसके स्थान पर राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया,
लोभ, कर्म, नोकर्म, मन, वचन, काय, श्रोत्र, चक्षु, घ्राण, रसन और स्पर्शनयह सोलह शब्द रखकर,
सोलह गाथासूत्र व्याख्यानरूप करना और इस उपदेशसे दूसरे भी विचार करना चाहिए ।।२११।।
अब, यह कहते हैं कि ज्ञानीके आहारका भी परिग्रह नहीं है :
अनिच्छक कहा अपरिग्रही, नहिं अशन इच्छा ज्ञानिके
इससे न परिग्रहि अशनका वह, अशनका ज्ञायक रहे ।।२१२।।
गाथार्थ :[अनिच्छः ] अनिच्छकको [अपरिग्रहः ] अपरिग्रही [भणितः ] कहा है
[च ] और [ज्ञानी ] ज्ञानी [अशनम् ] भोजनको [न इच्छति ] नहीं चाहता, [तेन ] इसलिये [सः ]
वह [अशनस्य ] भोजनका [अपरिग्रहः तु ] परिग्रही नहीं है, (किन्तु) [ज्ञायकः ] (भोजनका)
ज्ञायक ही [भवति ] है
टीका :इच्छा परिग्रह है उसको परिग्रह नहीं हैजिसको इच्छा नहीं है इच्छा तो
अज्ञानमय भाव है और अज्ञानमय भाव ज्ञानीके नहीं होता, ज्ञानीके ज्ञानमय ही भाव होता है;
इसलिये अज्ञानमय भाव जो इच्छा उसके अभावके कारण ज्ञानी भोजनको नहीं चाहता; इसलिये
ज्ञानीके भोजनका परिग्रह नहीं है
ज्ञानमय एक ज्ञायकभावके सद्भावके कारण यह (ज्ञानी)
भोजनका केवल ज्ञायक ही है