Samaysar (Hindi). Gatha: 218-219.

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णाणी रागप्पजहो सव्वदव्वेसु कम्ममज्झगदो
णो लिप्पदि रजएण दु कद्दममज्झे जहा कणयं ।।२१८।।
अण्णाणी पुण रत्तो सव्वदव्वेसु कम्ममज्झगदो
लिप्पदि कम्मरएण दु कद्दममज्झे जहा लोहं ।।२१९।।
ज्ञानी रागप्रहायकः सर्वद्रव्येषु कर्ममध्यगतः
नो लिप्यते रजसा तु कर्दममध्ये यथा कनकम् ।।२१८।।
अज्ञानी पुना रक्त : सर्वद्रव्येषु कर्ममध्यगतः
लिप्यते कर्मरजसा तु कर्दममध्ये यथा लोहम् ।।२१९।।
यथा खलु कनकं कर्दममध्यगतमपि कर्दमेन न लिप्यते, तदलेपस्वभावत्वात्, तथा किल
कहानजैनशास्त्रमाला ]
निर्जरा अधिकार
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[एषः ] वह [कर्ममध्यपतितः अपि ] कर्मके बीच पड़ा हुआ भी [सकलकर्मभिः ] सर्व कर्मोंसे
[न लिप्यते ] लिप्त नहीं होता
।१४९।
अब इसी अर्थका विवेचन गाथाओं द्वारा कहते हैं :
हो द्रव्य सबमें रागवर्जक ज्ञानि कर्मों मध्यमें
पर कर्मरजसे लिप्त नहिं, ज्यों कनक कर्दममध्यमें ।।२१८।।
पर द्रव्य सबमें रागशील अज्ञानि कर्मों मध्यमें
वह कर्मरजसे लिप्त हो, ज्यों लोह कर्दममध्यमें ।।२१९।।
गाथार्थ :[ज्ञानी ] ज्ञानी [सर्वद्रव्येषु ] जो कि सर्व द्रव्योंके प्रति [रागप्रहायकः ]
रागको छोड़नेवाला है वह [कर्ममध्यगतः ] क र्मके मध्यमें रहा हुआ हो [तु ] तो भी [रजसा ]
क र्मरूप रजसे [नो लिप्यते ] लिप्त नहीं होता
[यथा ] जैसे [कनकम् ] सोना [कर्दममध्ये ]
कीचड़के बीच पड़ा हुआ हो तो भी लिप्त नहीं होता [पुनः ] और [अज्ञानी ] अज्ञानी
[सर्वद्रव्येषु ] जो कि सर्व द्रव्योंके प्रति [रक्तः ] रागी है वह [कर्ममध्यगतः ] क र्मके मध्य रहा
हुआ [कर्मरजसा ] क र्मरजसे [लिप्यते तु ] लिप्त होता है
[यथा ] जैसे [लोहम् ] लोहा
[कर्दममध्ये ] कीचड़के बीच रहा हुआ लिप्त हो जाता हैै (अर्थात् उसे जंग लग जाती है)
टीका :जैसे वास्तवमें सोना कीचड़के बीच पड़ा हो तो भी वह कीचड़से लिप्त नहीं