Samaysar (Hindi). Gatha: 228 Kalash: 154.

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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
(शार्दूलविक्रीडित)
सम्यग्द्रष्टय एव साहसमिदं कर्तुं क्षमन्ते परं
यद्वज्रेऽपि पतत्यमी भयचलत्त्रैलोक्यमुक्ताध्वनि
सर्वामेव निसर्गनिर्भयतया शंकां विहाय स्वयं
जानन्तः स्वमवध्यबोधवपुषं बोधाच्च्यवन्ते न हि
।।१५४।।
सम्माद्दिट्ठी जीवा णिस्संका होंति णिब्भया तेण
सत्तभयविप्पमुक्का जम्हा तम्हा दु णिस्संका ।।२२८।।
मिथ्यादृष्टि तो बहिरात्मा हैं, वे बाहरसे ही भला-बुरा मानते हैं; अन्तरात्माकी गतिको बहिरात्मा
क्या जाने ?
।१५३।
अब, इसी अर्थका समर्थक और आगामी गाथाका सूचक काव्य कहते हैं :

श्लोकार्थ :[यत् भय-चलत्-त्रैलोक्य-मुक्त-अध्वनि वज्रे पतति अपि ] जिसके भयसे चलायमान होते हुवेखलबलाते हुवेतीनों लोक अपनेे मार्गको छोड़ देते हैं ऐसा वज्रपात होने पर भी, [अमी ] ये सम्यग्दृष्टि जीव, [निसर्ग-निर्भयतया ] स्वभावतः निर्भय होनेसेे, [सर्वाम् एव शंकां विहाय ] समस्त शंकाको छोड़कर, [स्वयं स्वम् अवध्य-बोध-वपुषं जानन्तः ] स्वयं अपनेको (आत्माको) जिसका ज्ञानरूप शरीर अवध्य है ऐसा जानते हुए, [बोधात् च्यवन्ते न हि ] ज्ञानसे च्युत नहीं होते [इदं परं साहसम् सम्यग्दृष्टयः एव क र्तुं क्षमन्ते ] ऐसा परम साहस क रनेके लिये मात्र सम्यग्दृष्टि ही समर्थ हैं

भावार्थ :सम्यग्दृष्टि जीव निःशंकितगुणयुक्त होते हैं, इसलिये चाहे जैसे शुभाशुभ कर्मोदयके समय भी वे ज्ञानरूप ही परिणमित होते हैं जिसके भयसे तीनों लोकके जीव काँप उठते हैंचलायमान हो उठते हैं और अपना मार्ग छोड़ देते हैं ऐसा वज्रपात होने पर भी सम्यग्दृष्टि जीव अपने स्वरूपको ज्ञानशरीरी मानता हुआ ज्ञानसे चलायमान नहीं होता उसे ऐसी शंका नहीं होती कि इस वज्रपातसे मेरा नाश हो जायेगा; यदि पर्यायका विनाश हो तो ठीक ही है, क्योंकि उसका तो विनश्वर स्वभाव ही है ।१५४।

अब इस अर्थको गाथा द्वारा कहते हैं :
सम्यक्ति जीव होते निःशंकित इसहि से निर्भय रहें
हैं सप्तभयप्रविमुक्त वे, इसहीसे वे निःशंक हैं ।।२२८।।