Samaysar (Hindi).

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इति निर्जरा निष्क्रान्ता
३६६
समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
प्रश्न :आप यह कह चुके हैं कि सम्यग्दृष्टिके निर्जरा होती है, बन्ध नहीं होता
किन्तु सिद्धान्तमें गुणस्थानोंकी परिपाटीमें अविरत सम्यग्दृष्टि इत्यादिके बन्ध कहा गया है
और घातिकर्मोंका कार्य आत्माके गुणोंका घात करना है, इसलिये दर्शन, ज्ञान, सुख, वीर्य
इन गुणोंका घात भी विद्यमान है चारित्रमोहका उदय नवीन बन्ध भी करता है यदि मोहके
उदयमें भी बन्ध न माना जाये तो यह भी क्यों न मान लिया जाये कि मिथ्यादृष्टिके
मिथ्यात्व-अनन्तानुबन्धीका उदय होने पर भी बन्ध नहीं होता ?
उत्तर :बन्धके होनेंमें मुख्य कारण मिथ्यात्व-अनन्तानुबन्धीका उदय ही है; और
सम्यग्दृष्टिके तो उनके उदयका अभाव है चारित्रमोहके उदयसे यद्यपि सुखगुणका घात होता
है तथा मिथ्यात्व-अनन्तानुबन्धीके अतिरिक्त और उनके साथ रहनेवाली अन्य प्रकृतियोंके
अतिरिक्त शेष घातिकर्मोंकी प्रकृतियोंका अल्प स्थिति-अनुभागवाला बन्ध तथा शेष
अघातिकर्मोंकी प्रकृतियोंका बन्ध होता है, तथापि जैसा मिथ्यात्व-अनन्तानुबन्धी सहित होता
है वैसा नहीं होता
अनन्त संसारका कारण तो मिथ्यात्व-अनन्तानुबन्धी ही है; उनका अभाव
हो जाने पर फि र उनका बन्ध नहीं होता; और जहाँ आत्मा ज्ञानी हुआ वहाँ अन्य बन्धकी
गणना कौन करता है ? वृक्षकी जड़ कट जाने पर फि र हरे पत्ते रहनेकी अवधि कितनी
होती है ? इसलिये इस अध्यात्मशास्त्रमें सामान्यतया ज्ञानी-अज्ञानी होनेके सम्बन्धमें ही प्रधान
कथन है
ज्ञानी होनेके बाद जो कुछ कर्म रहे हों वे सहज ही मिटते जायेंगे निम्नलिखित
दृष्टान्तके अनुसार ज्ञानीके सम्बन्धमें समझ लेना चाहिए कोई पुरुष दरिद्रताके कारण एक
झोपड़ेमें रहता था भाग्योदयसे उसे धन-धान्यसे परिपूर्ण बड़े महलकी प्राप्ति हो गई, इसलिये
वह उसमें रहनेको गया यद्यपि उस महलमें बहुत दिनोंका कूड़ा-कचरा भरा हुआ था तथापि
जिस दिन उसने आकर महलमें प्रवेश किया उस दिनसे ही वह उस महलका स्वामी हो
गया, सम्पत्तिवान हो गया
अब वह कूड़ा-कचरा साफ करना है सो वह क्रमशः अपनी
शक्तिके अनुसार साफ करता है जब सारा कचरा साफ हो जायेगा और महल उज्ज्वल
हो जायेगा तब वह परमानन्दको भोगेगा इसीप्रकार ज्ञानीके सम्बन्धमें समझना चाहिए ।१६२।
टीका :इसप्रकार निर्जरा (रंगभूमिमेंसे) बाहर निकल गई
भावार्थ :इसप्रकार, जिसने रंगभूमिमें प्रवेश किया था वह निर्जरा अपना स्वरूप
बताकर रंगभूमिसे बाहर निकल गई