इति श्रीमदमृतचन्द्रसूरिविरचितायां समयसारव्याख्यायामात्मख्यातौ निर्जराप्ररूपकः
षष्ठोऽङ्कः ।।
कहानजैनशास्त्रमाला ]
निर्जरा अधिकार
३६७
(सवैया)
सम्यकवन्त महन्त सदा समभाव रहै दुख सङ्कट आये,
कर्म नवीन बन्धे न तबै अर पूरव बन्ध झड़े बिन भाये;
पूरण अङ्ग सुदर्शनरूप धरै नित ज्ञान बढ़े निज पाये,
यों शिवमारग साधि निरन्तर, आनन्दरूप निजातम थाये ।।
इसप्रकार श्री समयसारकी (श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवप्रणीत श्री समयसार
परमागमकी) श्रीमद् अमृतचन्द्राचार्यदेवविरचित आत्मख्याति नामक टीकामें निर्जराका प्ररूपक
छठवाँ अंक समाप्त हुआ ।
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