कहानजैनशास्त्रमाला ]
बन्ध अधिकार
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भूमौ स्थितः, शस्त्रव्यायामकर्म कुर्वाणः, अनेकप्रकारकरणैः सचिताचित्तवस्तूनि निघ्नन्,
रजसा बध्यते । तस्य कतमो बन्धहेतुः? न तावत्स्वभावत एव रजोबहुला भूमिः,
स्नेहानभ्यक्तानामपि तत्रस्थानां तत्प्रसंगात् । न शस्त्रव्यायामकर्म, स्नेहानभ्यक्तानामपि तस्मात्
तत्प्रसंगात् । नानेकप्रकारकरणानि, स्नेहानभ्यक्तानामपि तैस्तत्प्रसंगात् । न सचित्ता-
चित्तवस्तूपघातः, स्नेहानभ्यक्तानामपि तस्मिंस्तत्प्रसंगात् । ततो न्यायबलेनैवैतदायातं, यत्तस्मिन्
पुरुषे स्नेहाभ्यंगकरणं स बन्धहेतुः । एवं मिथ्याद्रष्टिः आत्मनि रागादीन् कुर्वाणः, स्वभावत
एव कर्मयोग्यपुद्गलबहुले लोके कायवाङ्मनःकर्म कुर्वाणः, अनेकप्रकारकरणैः सचित्ता-
चित्तवस्तूनि निघ्नन्, कर्मरजसा बध्यते । तस्य कतमो बन्धहेतुः ? न तावत्स्वभावत एव
पदार्थ)से मर्दनयुक्त हुआ, स्वभावतः ही बहुतसी धूलिमय भूमिमें रहा हुआ, शस्त्रोंके
व्यायामरूप कर्म(क्रिया)को करता हुआ, अनेक प्रकारके करणोंके द्वारा सचित्त तथा अचित्त
वस्तुओंका घात करता हुआ, (उस भूमिकी) धूलिसे बद्ध होता है — लिप्त होता है । (यहाँ
विचार करो कि) इनमेंसे उस पुरुषके बन्धका कारण कौन है ? पहले, जो स्वभावसे ही
बहुतसी धूलिसे भरी हुई भूमि है वह धूलिबन्धका कारण नहीं है; क्योंकि यदि ऐसा हो
तो जिन्होंने तैलादिका मर्दन नहीं किया है ऐसे उस भूमिमें रहे हुए पुरुषोंको भी धूलिबन्धका
प्रसंग आ जाएगा । शस्त्रोंका व्यायामरूप कर्म भी धूलिबन्धका कारण नहीं है; क्योंकि यदि
ऐसा हो तो जिन्होंने तेलादिका मर्दन नहीं किया है उनके भी शस्त्रव्यायामरूप क्रियाके
करनेसे धूलिबन्धका प्रसंग आ जाएगा । अनेक प्रकारके कारण भी धूलिबन्धका कारण नहीं
हैं; क्योंकि यदि ऐसा हो तो जिन्होंने तैलादिका मर्दन नहीं किया है उनके भी अनेक प्रकारके
कारणोंसे धूलिबन्धका प्रसंग आ जाएगा । सचित्त तथा अचित्त वस्तुओंका घात भी
धूलिबन्धका कारण नहीं है; क्योंकि यदि ऐसा हो तो जिन्होंने तैलादिका मर्दन नहीं किया
उन्हें भी सचित्त तथा अचित्त वस्तुओंका घात करनेसे धूलिबन्धका प्रसंग आ जाएगा ।
इसलिए न्यायके बलसे ही यह फलित ( – सिद्ध) हुआ कि, उस पुरुषमें तैलादिका मर्दन
करना बन्धका कारण है । इसीप्रकार — मिथ्यादृष्टि अपनेमें रागादिक करता हुआ, स्वभावसे
ही जो बहुतसे कर्मयोग्य पुद्गलोंसे भरा हुआ है ऐसे लोकमें काय-वचन-मनका कर्म
(क्रिया) करता हुआ, अनेक प्रकारके करणोंके द्वारा सचित्त तथा अचित्त वस्तुओंका घात
करता हुआ, कर्मरूप रजसे बँधता है । (यहाँ विचार करो कि) इनमेंसे उस पुरुषके बन्धका
कारण कौन है ? प्रथम, स्वभावसे ही जो बहुतसे कर्मयोग्य पुद्गलोंसे भरा हुआ है ऐसा
लोक बन्धका कारण नहीं है; क्योंकि यदि ऐसा हो तो सिद्धोंको भी, जो कि लोकमें रह