Samaysar (Hindi). Gatha: 254-256.

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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
कम्मोदएण जीवा दुक्खिदसुहिदा हवंति जदि सव्वे
कम्मं च ण देसि तुमं दुक्खिदसुहिदा कह कया ते ।।२५४।।
कम्मोदएण जीवा दुक्खिदसुहिदा हवंति जदि सव्वे
कम्मं च ण दिंति तुहं कदोसि कहं दुक्खिदो तेहिं ।।२५५।।
कम्मोदएण जीवा दुक्खिदसुहिदा हवंति जदि सव्वे
कम्मं च ण दिंति तुहं कह तं सुहिदो कदो तेहिं ।।२५६।।
कर्मोदयेन जीवा दुःखितसुखिता भवन्ति यदि सर्वे
कर्म च न ददासि त्वं दुःखितसुखिताः कथं कृतास्ते ।।२५४।।
कर्मोदयेन जीवा दुःखितसुखिता भवन्ति यदि सर्वे
कर्म च न ददति तव कृतोऽसि कथं दुःखितस्तैः ।।२५५।।
कर्मोदयेन जीवा दुःखितसुखिता भवन्ति यदि सर्वे
कर्म च न ददति तव कथं त्वं सुखितः कृतस्तैः ।।२५६।।
जहँ उदयकर्म जु जीव सब ही, दुःखित अवरु सुखी बने
तू कर्म तो देता नहीं, कैसे तू दुखित-सुखी करे ? ।।२५४।।
जहँ उदयकर्म जु जीव सब ही, दुःखित अवरु सुखी बनें
वे कर्म तुझ देते नहीं, तो दुखित तुझ कैसे करें ? ।।२५५।।
जहँ उदयकर्म जु जीव सब ही, दुःखित अवरु सुखी बनें
वे कर्म तुझ देते नहीं, तो सुखित तुझ कैसे करें ? ।।२५६।।
गाथार्थ :[यदि ] यदि [सर्वे जीवाः ] सभी जीव [कर्मोदयेन ] क र्मके उदयसे
[दुःखितसुखिताः ] दुःखी-सुखी [भवन्ति ] होते हैं, [च ] और [त्वं ] तू [कर्म ] उन्हें क र्म तो
[न ददासि ] देता नहीं है, तो (हे भाई !) तूने [ते ] उन्हें [दुःखितसुखिताः ] दुःखी-सुखी [कथं
कृताः ]
कैसे किया ?
[यदि ] यदि [सर्वे जीवाः ] सभी जीव [कर्मोदयेन ] क र्मके उदयसे [दुःखितसुखिताः ]
दुःखी-सुखी [भवन्ति ] होते हैं, [च ] और वे [तव ] तुझे [कर्म ] क र्म तो [न ददति ] नहीं देते,