कहानजैनशास्त्रमाला ]
बन्ध अधिकार
३८७
यो म्रियते यश्च दुःखितो जायते कर्मोदयेन स सर्वः ।
तस्मात्तु मारितस्ते दुःखितश्चेति न खलु मिथ्या ।।२५७।।
यो न म्रियते न च दुःखितः सोऽपि च कर्मोदयेन चैव खलु ।
तस्मान्न मारितो नो दुःखितश्चेति न खलु मिथ्या ।।२५८।।
यो हि म्रियते जीवति वा, दुःखितो भवति सुखितो भवति वा, स खलु स्वकर्मोदयेनैव,
तदभावे तस्य तथा भवितुमशक्यत्वात् । ततः मयायं मारितः, अयं जीवितः, अयं दुःखितः
कृतः, अयं सुखितः कृतः इति पश्यन् मिथ्याद्रष्टिः ।
(अनुष्टुभ्)
मिथ्याद्रष्टेः स एवास्य बन्धहेतुर्विपर्ययात् ।
य एवाध्यवसायोऽयमज्ञानात्माऽस्य द्रश्यते ।।१७०।।
गाथार्थ : — [यः म्रियते ] जो मरता है [च ] और [यः दुःखितः जायते ] जो दुःखी होता
है [सः सर्वः ] वह सब [कर्मोदयेन ] क र्मोदयसे होता है; [तस्मात् तु ] इसलिये [मारितः च
दुःखितः ] ‘मैंने मारा, मैंने दुःखी किया’ [इति ] ऐसा [ते ] तेरा अभिप्राय [न खलु मिथ्या ] क्या
वास्तवमें मिथ्या नहीं है ?
[च ] और [यः न म्रियते ] जो न मरता है [च ] और [न दुःखितः ] न दुःखी होता है
[सः अपि ] वह भी [खलु ] वास्तवमें [कर्मोदयेन च एव ] क र्मोदयसे ही होता है; [तस्मात् ]
इसलिये [न मारितः च न दुःखितः ] ‘मैंने नहीं मारा, मैंने दुःखी नहीं किया’ [इति ] ऐसा तेरा
अभिप्राय [न खलु मिथ्या ] क्या वास्तवमें मिथ्या नहीं है ?
टीका : — जो मरता है या जीता है, दुःखी होता है या सुखी होता है, यह वास्तवमें अपने
कर्मोदयसे ही होता है, क्योंकि अपने कर्मोदयके अभावमें उसका वैसा होना (मरना, जीना, दुःखी
या सुखी होना) अशक्य है । इसलिये ऐसा देखनेवाला अर्थात् माननेवाला मिथ्यादृष्टि है कि —
‘मैंने इसे मारा, इसे जिलाया, इसे दुःखी किया, इसे सुखी किया’ ।
भावार्थ : — कोई किसीके मारे नहीं मरता और जिलाए नहीं जीता तथा किसीके सुखी-
दुःखी किये सुखी-दुःखी नहीं होता; इसलिये जो मारने, जिलाने आदिका अभिप्राय करता है वह
मिथ्यादृष्टि ही है — यह निश्चयका वचन है । यहाँ व्यवहारनय गौण है ।।२५७ से २५८।।
अब आगेके कथनका सूचक श्लोक कहते हैं : —
श्लोकार्थ : — [अस्य मिथ्यादृष्टेः ] मिथ्यादृष्टिके [यः एव अयम् अज्ञानात्मा अध्यवसायः