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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
एसा दु जा मदी दे दुक्खिदसुहिदे करेमि सत्ते त्ति ।
एसा दे मूढमदी सुहासुहं बंधदे कम्मं ।।२५९।।
एषा तु या मतिस्ते दुःखितसुखितान् करोमि सत्त्वानिति ।
एषा ते मूढमतिः शुभाशुभं बध्नाति कर्म ।।२५९।।
परजीवानहं हिनस्मि, न हिनस्मि, दुःखयामि, सुखयामि इति य एवायमज्ञानमयो-
ऽध्यवसायो मिथ्याद्रष्टेः, स एव स्वयं रागादिरूपत्वात्तस्य शुभाशुभबन्धहेतुः ।
अथाध्यवसायं बन्धहेतुत्वेनावधारयति —
दृश्यते ] जो यह अज्ञानस्वरूप १अध्यवसाय दिखाई देता है [सः एव] वह अध्यवसाय ही, [विपर्ययात् ]
विपर्ययस्वरूप ( – मिथ्या) होनेसे, [अस्य बन्धहेतुः ] उस मिथ्यादृष्टिके बन्धका कारण है ।
भावार्थ : — मिथ्या अभिप्राय ही मिथ्यात्व है और वही बन्धका कारण है — ऐसा जानना
चाहिए ।१७०।
अब, यह कहते हैं कि यह अज्ञानमय अध्यवसाय ही बन्धका कारण है : —
यह बुद्धि तेरी — ‘दुखित अवरु सुखी करूँ हूँ जीवको’ ।
वह मूढमति तेरी अरे ! शुभ अशुभ बांधे कर्मको ।।२५९।।
गाथार्थ : — [ते ] तेरी [या एषा मतिः तु ] यह जो बुद्धि है कि मैं [सत्त्वान् ] जीवोंको
[दुःखितसुखितान् ] दुःखी-सुखी [करोमि इति ] करता हूँं, [एषा ते मूढमतिः ] यही तेरी मूढबुद्धि
ही (मोहस्वरूप बुद्धि ही) [शुभाशुभं कर्म ] शुभाशुभ क र्मको [बध्नाति ] बाँधती है ।
टीका : — ‘मैं पर जीवोंको मारता हूँ, नहीं मारता, दुःखी करता हूँ, सुखी करता हूँ’ ऐसा
जो यह अज्ञानमय अध्यवसाय मिथ्यादृष्टिके है, वही (अर्थात् वह अध्यवसाय ही) स्वयं रागादिरूप
होनेसे उसे ( – मिथ्यादृष्टिको) शुभाशुभ बन्धका कारण है ।
भावार्थ : — मिथ्या अध्यवसाय बन्धका कारण है ।।२५९।।
अब, अध्यवसायको बन्धके कारणके रूपमें भलीभाँति निश्चित करते हैं (अर्थात् मिथ्या
१जो परिणाम मिथ्या अभिप्राय सहित हो ( – स्वपरके एकत्वके अभिप्रायसे युक्त हो) अथवा वैभाविक
हो, उस परिणामके लिये अध्यवसाय शब्द प्रयुक्त किया जाता है । (मिथ्या) निश्चय अथवा (मिथ्या)
अभिप्रायके अर्थमें भी अध्यवसाय शब्द प्रयुक्त होता है ।