Samaysar (Hindi). Gatha: 260-261.

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कहानजैनशास्त्रमाला ]
बन्ध अधिकार
३८९
दुक्खिदसुहिदे सत्ते करेमि जं एवमज्झवसिदं ते
तं पावबंधगं वा पुण्णस्स व बंधगं होदि ।।२६०।।
मारिमि जीवावेमि य सत्ते जं एवमज्झवसिदं ते
तं पावबंधगं वा पुण्णस्स व बंधगं होदि ।।२६१।।
दुःखितसुखितान् सत्त्वान् करोमि यदेवमध्यवसितं ते
तत्पापबन्धकं वा पुण्यस्य वा बन्धकं भवति ।।२६०।।
मारयामि जीवयामि च सत्त्वान् यदेवमध्यवसितं ते
तत्पापबन्धकं वा पुण्यस्य वा बन्धकं भवति ।।२६१।।
य एवायं मिथ्याद्रष्टेरज्ञानजन्मा रागमयोऽध्यवसायः स एव बन्धहेतुः इत्यव-
अध्यवसाय ही बन्धका कारण है ऐसा नियमसे कहते हैं ) :
करता तु अध्यवसान‘दुःखित-सुखी करूँ हूँ जीवको’
वह बाँधता है पापको वा बाँधता है पुण्यको ।।२६०।।
करता तु अध्यवसान‘मैं मारूँ जिवाऊँ जीवको’
वह बाँधता है पापको वा बाँधता है पुण्यको ।।२६१।।
गाथार्थ :[सत्त्वान् ] जीवोंको मैं [दुःखितसुखितान् ] दुःखी-सुखी [करोमि ] करता
हूँ’ [एवम् ] ऐसा [यत् ते अध्यवसितं ] जो तेरा अध्यवसान, [तत् ] वही [पापबन्धकं वा ]
पापका बन्धक [ पुण्यस्य बन्धकं वा ] अथवा पुण्यका बन्धक [भवति ] होता है
[ सत्त्वान् ] जीवोंको मैं [मारयामि च जीवयामि ] मारता हूँ और जिलाता हूँ ’ [एवम् ]
ऐसा [यत् ते अध्यवसितं ] जो तेरा अध्यवसान, [तत् ] वही [पापबन्धकं वा ] पापका बन्धक
[पुण्यस्य बन्धकं वा ] अथवा पुण्यका बन्धक [भवति ] होता है
टीका :मिथ्यादृष्टिके अज्ञानसे उत्पन्न होनेवाला जो यह रागमय अध्यवसाय है वही
जो परिणमन मिथ्या अभिप्राय सहित हो (स्वपरके एकत्वके अभिप्रायसे युक्त हो) अथवा वैभाविक
हो, उस परिणमनके लिए ‘अध्यवसान’ शब्द प्रयुक्त होता है (मिथ्या) निश्चय अथवा (मिथ्या) अभिप्राय
करनेके अर्थमें भी ‘अध्यवसान’ शब्द प्रयुक्त होता है