Samaysar (Hindi).

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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
एवमलीकेऽदत्तेऽब्रह्मचर्ये परिग्रहे चैव
क्रियतेऽध्यवसानं यत्तेन तु बध्यते पापम् ।।२६३।।
तथापि च सत्ये दत्ते ब्रह्मणि अपरिग्रहत्वे चैव
क्रियतेऽध्यवसानं यत्तेन तु बध्यते पुण्यम् ।।२६४।।
एवमयमज्ञानात् यो यथा हिंसायां विधीयतेऽध्यवसायः, तथा असत्यादत्ताब्रह्म-
परिग्रहेषु यश्च विधीयते स सर्वोऽपि केवल एव पापबन्धहेतुः यस्तु अहिंसायां यथा
विधीयतेऽध्यवसायः, तथा यश्च सत्यदत्तब्रह्मापरिग्रहेषु विधीयते स सर्वोऽपि केवल एव
पुण्यबन्धहेतुः
गाथार्थ :[एवम् ] इसीप्रकार (जैसा कि पहले हिंसाके अध्यवसायके सम्बन्धमें
कहा गया है उसीप्रकार) [अलीके ] असत्यमें, [अदत्ते ] चोरीमें, [अब्रह्मचर्ये ] अब्रह्मचर्यमें
[च एव ] और [परिग्रहे ] परिग्रहमें [यत् ] जो [अध्यवसानं ] अध्यवसान [क्रियते ] किया
जाता है [तेन तु ] उससे [पापं बध्यते ] पापका बन्ध होता है; [तथापि च ] और इसीप्रकार
[सत्ये ] सत्यमें, [दत्ते ] अचौर्यमें, [ब्रह्मणि ] ब्रह्मचर्यमें [च एव ] और [अपरिग्रहत्वे ]
अपरिग्रहमें [यत् ] जो [अध्यवसानं ] अध्यवसान [क्रियते ] किया जाता है [तेन तु ] उससे
[पुण्यं बध्यते ] पुण्यका बन्ध होता है
टीका :इसप्रकार (पूर्वोक्त प्रकार) अज्ञानसे यह जो हिंसामें अध्यवसाय किया
जाता है उसीप्रकार असत्य, चोरी, अब्रह्मचर्य और परिग्रहमें भी जो (अध्यवसाय) किया जाता
है, वह सब ही पापबन्धका एकमात्र कारण है; और जो अहिंसामें अध्यवसाय किया जाता है
उसीप्रकार सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रहमें भी (अध्यवसाय) किया जाये, वह सब ही
पुण्यबन्धका एकमात्र कारण है
भावार्थ :जैसे हिंसामें अध्यवसाय पापबन्धका कारण कहा है, उसीप्रकार असत्य,
चोरी, अब्रह्मचर्य और परिग्रहमें अध्यवसाय भी पापबन्धका कारण है जैसे अहिंसामें अध्यवसाय
पुण्यबन्धका कारण है; उसीप्रकार सत्य, अचौर्य (दिया हुआ लेना वह), ब्रह्मचर्य और
अपरिग्रहमें अध्यवसाय भी पुण्यबन्धका कारण है इसप्रकार, पाँच पापोंमें (अव्रतोंमें)
अध्यवसाय किया जाये सो पापबन्धका कारण है और पाँच (एकदेश या सर्वदेश) व्रतोंमें
अध्यवसाय किया जाये सो पुण्यबन्धका कारण है
पाप और पुण्य दोनोंके बन्धनमें, अध्यवसाय
ही एकमात्र बन्धका कारण है ।।२६३-२६४।।