Samaysar (Hindi). Gatha: 283-285.

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कहानजैनशास्त्रमाला ]
बन्ध अधिकार
४१७
अप्पडिकमणं दुविहं अपच्चखाणं तहेव विण्णेयं
एदेणुवदेसेण य अकारगो वण्णिदो चेदा ।।२८३।।
अप्पडिकमणं दुविहं दव्वे भावे अपच्चखाणं पि
एदेणुवदेसेण य अकारगो वण्णिदो चेदा ।।२८४।।
जावं अप्पडिकमणं अपच्चखाणं च दव्वभावाणं
कुव्वदि आदा तावं कत्ता सो होदि णादव्वो ।।२८५।।
अप्रतिक्रमणं द्विविधमप्रत्याख्यानं तथैव विज्ञेयम्
एतेनोपदेशेन चाकारको वर्णितश्चेतयिता ।।२८३।।
अप्रतिक्रमणं द्विविधं द्रव्ये भावेऽपिऽप्रत्याख्यान
एतेनोपदेशेन चाकारको वर्णितश्चेतयिता ।।२८४।।
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अनप्रतिक्रमण दो भाँति, अनपचखाण भी दो भाँति है
जीवको अकारक है कहा इस रीतके उपदेशसे ।।२८३।।
अनप्रतिक्रमण दोद्रव्यभाव जु, योंहि अनपचखाण है
जीवको अकारक है कहा इस रीतके उपदेशसे ।।२८४।।
अनप्रतिक्रमण अरु त्योंहि अनपचखाण द्रव्य रु भावका
जबतक करै है आतमा, कर्ता बनै है जानना ।।२८५।।
गाथार्थ :[अप्रतिक्रमणं ] अप्रतिक्र मण [द्विविधम् ] दो प्रकारका है, [तथा एव ] उसी
तरह [अप्रत्याख्यानं ] अप्रत्याख्यान दो प्रकारका [विज्ञेयम् ] जानना चाहिए;[एतेन उपदेशेन
च ] इस उपदेशसे [चेतयिता ] आत्मा [अकारकः वर्णितः ] अकारक कहा गया है
[अप्रतिक्रमणं ] अप्रतिक्र मण [द्विविधं ] दो प्रकारका है[द्रव्ये भावे ] द्रव्य सम्बन्धी
और भाव सम्बन्धी; [अप्रत्याख्यानम् अपि ] इसीप्रकार अप्रत्याख्यान भी दो प्रकारका हैद्रव्य
सम्बन्धी और भाव सम्बन्धी;[एतेन उपदेशेन च ] इस उपदेशसे [चेतयिता ] आत्मा [अकारकः
वर्णितः ] अकारक कहा गया है