आत्मात्मना रागादीनामकारक एव, अप्रतिक्रमणाप्रत्याख्यानयोर्द्वैविध्योपदेशान्यथानुपपत्तेः । यः खलु अप्रतिक्रमणाप्रत्याख्यानयोर्द्रव्यभावभेदेन द्विविधोपदेशः स, द्रव्यभावयोर्निमित्त- नैमित्तिकभावं प्रथयन्, अकर्तृत्वमात्मनो ज्ञापयति । तत एतत् स्थितं — परद्रव्यं निमित्तं, नैमित्तिका आत्मनो रागादिभावाः । यद्येवं नेष्येत तदा द्रव्याप्रतिक्रमणाप्रत्याख्यानयोः कर्तृत्वनिमित्तत्वोपदेशोऽनर्थक एव स्यात्, तदनर्थकत्वे त्वेकस्यैवात्मनो रागादिभावनिमित्तत्वापत्तौ नित्यकर्तृत्वानुषंगान्मोक्षाभावः प्रसजेच्च । ततः परद्रव्यमेवात्मनो रागादिभावनिमित्तमस्तु । तथा सति तु रागादीनामकारक एवात्मा । तथापि यावन्निमित्तभूतं द्रव्यं न प्रतिक्रामति न प्रत्याचष्टे च तावन्नैमित्तिकभूतं भावं न प्रतिक्रामति न प्रत्याचष्टे च, यावत्तु भावं न प्रतिक्रामति न प्रत्याचष्टे
[यावत् ] जब तक [आत्मा ] आत्मा [द्रव्यभावयोः ] द्रव्यका और भावका [अप्रतिक्रमणम् च अप्रत्याख्यानं ] अप्रतिक्र मण तथा अप्रत्याख्यान [करोति ] क रता है [तावत् ] तब तक [सः ] वह [कर्ता भवति ] क र्ता होता है, [ज्ञातव्यः ] ऐसा जानना चाहिए ।
टीका : — आत्मा स्वतः रागादिका अकारक ही है; क्योंकि यदि ऐसा न हो तो (अर्थात् यदि आत्मा स्वतः ही रागादिभावोंका कारक हो तो) अप्रतिक्रमण और अप्रत्याख्यानकी द्विविधताका उपदेश नहीं हो सकता । अप्रतिक्रमण और अप्रत्याख्यानका जो वास्तवमें द्रव्य और भावके भेदसे द्विविध (दो प्रकारका) उपदेश है वह, द्रव्य और भावके निमित्त-नैमित्तिकत्वको प्रगट करता हुआ, आत्माके अकर्तृत्वको ही बतलाता है । इसलिये यह निश्चित हुआ कि परद्रव्य निमित्त है और आत्माके रागादिभाव नैमित्तिक हैं । यदि ऐसा न माना जाये तो द्रव्य-अप्रतिक्रमण और द्रव्य-अप्रत्याख्यान कर्तृत्वके निमित्तरूप उपदेश निरर्थक ही होगा, और वह निरर्थक होने पर एक ही आत्माको रागादिभावोंका निमित्तत्व आ जायेगा, जिससे नित्य-कर्तृत्वका प्रसंग आ जायेगा, जिससे मोक्षका अभाव सिद्ध होगा । इसलिये परद्रव्य ही आत्माके रागादिभावोंका निमित्त हो । और ऐसा होने पर, यह सिद्ध हुआ कि आत्मा रागादिका अकारक ही है । (इसप्रकार यद्यपि आत्मा रागादिका अकारक ही है) तथापि जब तक वह निमित्तभूत द्रव्यका ( – परद्रव्यका) प्रतिक्रमण तथा प्रत्याख्यान नहीं करता तब तक नैमित्तिकभूत भावका ( – रागादिभावका) प्रतिक्रमण तथा प्रत्याख्यान नहीं करता, और जब तक भावका प्रतिक्रमण तथा प्रत्याख्यान नहीं करता तब तक वह उनका कर्ता ही है; जब वह निमित्तभूत द्रव्यका प्रतिक्रमण तथा प्रत्याख्यान करता है तभी नैमित्तिकभूत भावका