Samaysar (Hindi). Gatha: 286.

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कहानजैनशास्त्रमाला ]
बन्ध अधिकार
४१९
च तावत्कर्तैव स्यात् यदैव निमित्तभूतं द्रव्यं प्रतिक्रामति प्रत्याचष्टे च तदैव नैमित्तिकभूतं भावं
प्रतिक्रामति प्रत्याचष्टे च, यदा तु भावं प्रतिक्रामति प्रत्याचष्टे च तदा साक्षादकर्तैव स्यात्
द्रव्यभावयोर्निमित्तनैमित्तिकभावोदाहरणं चैतत्
आधाकम्मादीया पोग्गलदव्वस्स जे इमे दोसा
कह ते कुव्वदि णाणी परदव्वगुणा दु जे णिच्चं ।।२८६।।
प्रतिक्रमण तथा प्रत्याख्यान करता है, और जब भावका प्रतिक्रमण तथा प्रत्याख्यान करता है
तब वह साक्षात् अकर्ता ही है
भावार्थ :अतीत कालमें जिन परद्रव्योंका ग्रहण किया था उन्हें वर्तमानमें अच्छा
समझना, उनके संस्कार रहना, उनके प्रति ममत्व रहना, वह द्रव्य-अप्रतिक्रमण है और उन
परद्रव्योंके निमित्तसे जो रागादिभाव हुए थे उन्हें वर्तमानमें अच्छा जानना, उनके संस्कार रहना,
उनके प्रति ममत्व रहना, भाव-अप्रतिक्रमण है
इसी प्रकार आगामी काल सम्बन्धी परद्रव्योंकी
इच्छा रखना, ममत्व रखना, द्रव्य अप्रत्याख्यान है और उन परद्रव्योंके निमित्तसे आगामी कालमें
होनेवाले रागादिभावोंकी इच्छा रखना, ममत्व रखना, भाव अप्रत्याख्यान है
इसप्रकार द्रव्य-
अप्रतिक्रमण और भाव-अप्रतिक्रमण तथा द्रव्य-अप्रत्याख्यान और भाव-अप्रत्याख्यानऐसा जो
अप्रतिक्रमण और अप्रत्याख्यानका दो प्रकारसे उपदेश है, वह द्रव्यभावके निमित्त-नैमित्तिकभावको
बतलाता है
इससे यह सिद्ध हुआ किपरद्रव्य तो निमित्त है और रागादिभाव नैमित्तिक हैं
इसप्रकार आत्मा रागादिभावोंको स्वयमेव न करनेसे रागादिभावोंका अकर्ता ही है ऐसा सिद्ध हुआ
इसप्रकार यद्यपि यह आत्मा रागादिभावोंका अकर्ता ही है तथापि जब तक उसके निमित्तभूत
परद्रव्यके अप्रतिक्रमण-अप्रत्याख्यान हैं तब तक उसके रागादिभावोंके अप्रतिक्रमण-अप्रत्याख्यान
हैं, और जब तक रागादिभावोंके अप्रतिक्रमण-अप्रत्याख्यान हैं तब तक वह रागादिभावोंका कर्ता
ही है; जब वह निमित्तभूत परद्रव्यके प्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान करता है तब उसके नैमित्तिक
रागादिभावोंके भी प्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान हो जाते हैं, और जब रागादिभावोंके प्रतिक्रमण-
प्रत्याख्यान हो जाते हैं तब वह साक्षात् अकर्ता ही है
।।२८३ से २८५।।
अब द्रव्य और भावकी निमित्त-नैमित्तिकताका उदाहरण देते हैं :
हैं अधःकर्मादिक जु पुद्गलद्रव्यके ही दोष ये
कैसे करे ‘ज्ञानी’ सदा परद्रव्यके जो गुणहि हैं ? ।।२८६।।