कहानजैनशास्त्रमाला ]
बन्ध अधिकार
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च तावत्कर्तैव स्यात् । यदैव निमित्तभूतं द्रव्यं प्रतिक्रामति प्रत्याचष्टे च तदैव नैमित्तिकभूतं भावं
प्रतिक्रामति प्रत्याचष्टे च, यदा तु भावं प्रतिक्रामति प्रत्याचष्टे च तदा साक्षादकर्तैव स्यात् ।
द्रव्यभावयोर्निमित्तनैमित्तिकभावोदाहरणं चैतत् —
आधाकम्मादीया पोग्गलदव्वस्स जे इमे दोसा ।
कह ते कुव्वदि णाणी परदव्वगुणा दु जे णिच्चं ।।२८६।।
प्रतिक्रमण तथा प्रत्याख्यान करता है, और जब भावका प्रतिक्रमण तथा प्रत्याख्यान करता है
तब वह साक्षात् अकर्ता ही है ।
भावार्थ : — अतीत कालमें जिन परद्रव्योंका ग्रहण किया था उन्हें वर्तमानमें अच्छा
समझना, उनके संस्कार रहना, उनके प्रति ममत्व रहना, वह द्रव्य-अप्रतिक्रमण है और उन
परद्रव्योंके निमित्तसे जो रागादिभाव हुए थे उन्हें वर्तमानमें अच्छा जानना, उनके संस्कार रहना,
उनके प्रति ममत्व रहना, भाव-अप्रतिक्रमण है । इसी प्रकार आगामी काल सम्बन्धी परद्रव्योंकी
इच्छा रखना, ममत्व रखना, द्रव्य अप्रत्याख्यान है और उन परद्रव्योंके निमित्तसे आगामी कालमें
होनेवाले रागादिभावोंकी इच्छा रखना, ममत्व रखना, भाव अप्रत्याख्यान है । इसप्रकार द्रव्य-
अप्रतिक्रमण और भाव-अप्रतिक्रमण तथा द्रव्य-अप्रत्याख्यान और भाव-अप्रत्याख्यान — ऐसा जो
अप्रतिक्रमण और अप्रत्याख्यानका दो प्रकारसे उपदेश है, वह द्रव्यभावके निमित्त-नैमित्तिकभावको
बतलाता है । इससे यह सिद्ध हुआ कि — परद्रव्य तो निमित्त है और रागादिभाव नैमित्तिक हैं ।
इसप्रकार आत्मा रागादिभावोंको स्वयमेव न करनेसे रागादिभावोंका अकर्ता ही है ऐसा सिद्ध हुआ ।
इसप्रकार यद्यपि यह आत्मा रागादिभावोंका अकर्ता ही है तथापि जब तक उसके निमित्तभूत
परद्रव्यके अप्रतिक्रमण-अप्रत्याख्यान हैं तब तक उसके रागादिभावोंके अप्रतिक्रमण-अप्रत्याख्यान
हैं, और जब तक रागादिभावोंके अप्रतिक्रमण-अप्रत्याख्यान हैं तब तक वह रागादिभावोंका कर्ता
ही है; जब वह निमित्तभूत परद्रव्यके प्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान करता है तब उसके नैमित्तिक
रागादिभावोंके भी प्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान हो जाते हैं, और जब रागादिभावोंके प्रतिक्रमण-
प्रत्याख्यान हो जाते हैं तब वह साक्षात् अकर्ता ही है ।।२८३ से २८५।।
अब द्रव्य और भावकी निमित्त-नैमित्तिकताका उदाहरण देते हैं : —
हैं अधःकर्मादिक जु पुद्गलद्रव्यके ही दोष ये ।
कैसे करे ‘ज्ञानी’ सदा परद्रव्यके जो गुणहि हैं ? ।।२८६।।