Samaysar (Hindi). Gatha: 287.

< Previous Page   Next Page >


Page 420 of 642
PDF/HTML Page 453 of 675

 

४२०
समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
आधाकम्मं उद्देसियं च पोग्गलमयं इमं दव्वं
कह तं मम होदि कयं जं णिच्चमचेदणं वुत्तं ।।२८७।।
अधःकर्माद्याः पुद्गलद्रव्यस्य य इमे दोषाः
कथं तान् करोति ज्ञानी परद्रव्यगुणास्तु ये नित्यम् ।।२८६।।
अधःकर्मोद्देशिकं च पुद्गलमयमिदं द्रव्यं
कथं तन्मम भवति कृतं यन्नित्यमचेतनमुक्तम् ।।२८७।।

यथाधःकर्मनिष्पन्नमुद्देशनिष्पन्नं च पुद्गलद्रव्यं निमित्तभूतमप्रत्याचक्षाणो नैमित्तिकभूतं बन्धसाधकं भावं न प्रत्याचष्टे, तथा समस्तमपि परद्रव्यमप्रत्याचक्षाणस्तन्निमित्तकं भावं न प्रत्याचष्टे यथा चाधःकर्मादीन् पुद्गलद्रव्यदोषान्न नाम करोत्यात्मा परद्रव्यपरिणामत्वे सति आत्मकार्यत्वाभावात्, ततोऽधःकर्मोद्देशिकं च पुद्गलद्रव्यं न मम कार्यं नित्यमचेतनत्वे सति

उद्देशि त्योंही अधःकर्मी पौद्गलिक यह द्रव्य जो
कैसे हि मुझकृत होय नित्य अजीव वर्णा जिसहिको ।।२८७।।

गाथार्थ :[अधःकर्माद्याः ये इमे ] अधःक र्म आदि जो यह [पुद्गलद्रव्यस्य दोषाः ] पुद्गलद्रव्यके दोष हैं (उनको ज्ञानी अर्थात् आत्मा क रता नहीं है;) [तान् ] उनको [ज्ञानी ] ज्ञानी अर्थात् आत्मा [कथं करोति ] कैसे क रे [ये तु ] कि जो [नित्यम् ] सदा [परद्रव्यगुणाः ] परद्रव्यके गुण है ?

इसलिये [अधःकर्म उद्देशिकं च ] अधःक र्म और उद्देशिक [इदं ] ऐसा [पुद्गलमयम् द्रव्यं ] पुद्गलमय द्रव्य है (वह मेरा किया नहीं होता;) [तत् ] वह [मम कृ तं ] मेरा किया [कथं भवति ] कैसे हो [यत् ] कि जो [नित्यम् ] सदा [अचेतनम् उक्त म् ] अचेतन क हा गया है ?

टीका :जैसे अधःकर्मसे निष्पन्न और उद्देशसे निष्पन्न हुए निमित्तभूत (आहारादि) पुद्गलद्रव्यका प्रत्याख्यान न करता हुआ आत्मा (मुनि) नैमित्तिकभूत बन्धसाधक भावका प्रत्याख्यान (त्याग) नहीं करता, इसीप्रकार समस्त परद्रव्यका प्रत्याख्यान न करता हुआ आत्मा उसके निमित्तसे होनेवाले भावको नहीं त्यागता और ‘‘अधःकर्म आदि पुद्गलद्रव्यके दोषोंको आत्मा वास्तवमें नहीं करता, क्योंकि वे परद्रव्यके परिणाम हैं, इसलिये उन्हें आत्माके कार्यत्वका अभाव है; अतः अधःकर्म और उद्देशिक पुद्गलद्रव्य मेरा कार्य नहीं है, क्योंकि वह नित्य अचेतन