कहानजैनशास्त्रमाला ]
मोक्ष अधिकार
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संसिद्धिराधसिद्धं साधितमाराधितं चैकार्थम् ।
अपगतराधो यः खलु चेतयिता स भवत्यपराधः ।।३०४।।
यः पुनर्निरपराधश्चेतयिता निश्शङ्कितस्तु स भवति ।
आराधनया नित्यं वर्तते अहमिति जानन् ।।३०५।।
परद्रव्यपरिहारेण शुद्धस्यात्मनः सिद्धिः साधनं वा राधः । अपगतो राधो यस्य
चेतयितुः सोऽपराधः । अथवा अपगतो राधो यस्य भावस्य सोऽपराधः, तेन सह यश्चेतयिता
वर्तते स सापराधः । स तु परद्रव्यग्रहणसद्भावेन शुद्धात्मसिद्धयभावाद्बन्धशंकासम्भवे
सति स्वयमशुद्धत्वादनाराधक एव स्यात् । यस्तु निरपराधः स समग्रपरद्रव्यपरिहारेण
शुद्धात्मसिद्धिसद्भावाद्बन्धशंकाया असम्भवे सति उपयोगैकलक्षणशुद्ध आत्मैक एवाहमिति
१राध = आराधना; प्रसन्नता; कृपा; सिद्धि; पूर्णता; सिद्धि करना; पूर्ण करना ।
गाथार्थ : — [संसिद्धिराधसिद्धम् ] संसिद्धि, १राध, सिद्ध, [साधितम् आराधितं च ]
साधित और आराधित — [एकार्थम् ] ये एकार्थवाची शब्द हैं; [यः खलु चेतयिता ] जो
आत्मा [अपगतराधः ] ‘अपगतराध’ अर्थात् राधसे रहित है, [सः ] वह आत्मा [अपराधः ]
अपराध [भवति ] है ।
[पुनः ] और [यः चेतयिता ] जो आत्मा [निरपराधः ] निरपराध है [सः तु ] वह
[निश्शङ्कितः भवति ] निःशंक होता है; [अहम् इति जानन् ] ‘जो शुद्ध आत्मा है सो ही मैं
हूँ ’ ऐसा जानता हुआ [आराधनया ] आराधनासे [नित्यं वर्तते ] सदा वर्तता है ।
टीका : — परद्रव्यके परिहारसे शुद्ध आत्माकी सिद्धि अथवा साधन सो राध है । जो
आत्मा ‘अपगतराध’ अर्थात् राध रहित हो वह आत्मा अपराध है । अथवा (दूसरा समासविग्रह
इसप्रकार है :) जो भाव राध रहित हो वह भाव अपराध है; उस अपराधसे युक्त जो आत्मा
वर्तता हो वह आत्मा सापराध है । वह आत्मा, परद्रव्यके ग्रहणके सद्भाव द्वारा शुद्ध
आत्माकी सिद्धिके अभावके कारण बन्धकी शंका होती है, इसलिये स्वयं अशुद्ध होनेसे,
अनाराधक ही है । और जो आत्मा निरपराध है वह, समग्र परद्रव्यके परिहारसे शुद्ध आत्माकी
सिद्धिके सद्भावके कारण बन्धकी शंका नहीं होती, इसलिये ‘उपयोग ही जिसका एक
लक्षण है ऐसा एक शुद्ध आत्मा ही मैं हूँ’ इसप्रकार निश्चय करता हुआ शुद्ध आत्माकी सिद्धि