Samaysar (Hindi). Gatha: 310-311.

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कहानजैनशास्त्रमाला ]
सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार
४५७
ण कुदोचि वि उप्पण्णो जम्हा कज्जं ण तेण सो आदा
उप्पादेदि ण किंचि वि कारणमवि तेण ण स होदि ।।३१०।।
कम्मं पडुच्च कत्ता कत्तारं तह पडुच्च कम्माणि
उप्पज्जंति य णियमा सिद्धी दु ण दीसदे अण्णा ।।३११।।
द्रव्यं यदुत्पद्यते गुणैस्तत्तैर्जानीह्यनन्यत्
यथा कटकादिभिस्तु पर्यायैः कनकमनन्यदिह ।।३०८।।
जीवस्याजीवस्य तु ये परिणामास्तु दर्शिताः सूत्रे
तं जीवमजीवं वा तैरनन्यं विजानीहि ।।३०९।।
न कुतश्चिदप्युत्पन्नो यस्मात्कार्यं न तेन स आत्मा
उत्पादयति न किञ्चिदपि कारणमपि तेन न स भवति ।।३१०।।
कर्म प्रतीत्य कर्ता कर्तारं तथा प्रतीत्य कर्माणि
उत्पद्यन्ते च नियमात्सिद्धिस्तु न द्रश्यतेऽन्या ।।३११।।
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उपजै न आत्मा कोइसे, इससे न आत्मा कार्य है
उपजावता नहिं कोइको, इससे न कारण भी बने ।।३१०।।
रे ! कर्म-आश्रित होय कर्ता, कर्म भी करतारके
आश्रित हुवे उपजे नियमसे, अन्य नहिं सिद्धी दिखै ।।३११।।
गाथार्थ :[यत् द्रव्यं ] जो द्रव्य [गुणैः ] जिन गुणोंसे [उत्पद्यते ] उत्पन्न होता है,
[तैः ] उन गुणोंसे [तत् ] उसे [अनन्यत् जानीहि ] अनन्य जानो; [यथा ] जैसे [इह ] जगतमें
[कटकादिभिः पर्यायैः तु ] क ड़ा इत्यादि पर्यायोंसे [कनकम् ] सुवर्ण [अनन्यत् ] अनन्य है वैसे
[जीवस्य अजीवस्य तु ] जीव और अजीवके [ये परिणामाः तु ] जो परिणाम [सूत्रे
दर्शिताः ] सूत्रमें बताये हैं, [तैः ] उन परिणामोंसे [तं जीवम् अजीवम् वा ] उस जीव अथवा
अजीवको [अनन्यं विजानीहि ] अनन्य जानो
[यस्मात् ] क्योंकि [कुतश्चित् अपि ] किसीसे भी [न उत्पन्नः ] उत्पन्न नहीं हुआ, [तेन ]
इसलिये [सः आत्मा ] वह आत्मा [कार्यं न ] (किसीका) कार्य नहीं है, [किञ्चित् अपि ] और
किसीको [न उत्पादयति ] उत्पन्न नहीं करता, [तेन ] इसलिये [सः ] वह [कारणम् अपि ]
(किसीका) कारण भी [न भवति ] नहीं है