Samaysar (Hindi). Gatha: 312-313 Kalash: 195.

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कहानजैनशास्त्रमाला ]
सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार
४५९
(शिखरिणी)
अकर्ता जीवोऽयं स्थित इति विशुद्धः स्वरसतः
स्फु रच्चिज्जयोतिर्भिश्छुरितभुवनाभोगभवनः
तथाप्यस्यासौ स्याद्यदिह किल बन्धः प्रकृतिभिः
स खल्वज्ञानस्य स्फु रति महिमा कोऽपि गहनः
।।१९५।।
चेदा दु पयडीअट्ठं उप्पज्जइ विणस्सइ
पयडी वि चेययट्ठं उप्पज्जइ विणस्सइ ।।३१२।।
एवं बंधो उ दोण्हं पि अण्णोण्णप्पच्चया हवे
अप्पणो पयडीए य संसारो तेण जायदे ।।३१३।।
चेतयिता तु प्रकृत्यर्थमुत्पद्यते विनश्यति
प्रकृतिरपि चेतकार्थमुत्पद्यते विनश्यति ।।३१२।।
श्लोकार्थ :[स्वरसतः विशुद्धः ] जो निजरससे विशुद्ध है, और [स्फु रत्-चित्-
ज्योतिर्भिः छुरित-भुवन-आभोग-भवनः ] जिसकी स्फु रायमान होती हुई चैतन्यज्योतियोंके द्वारा
लोक का समस्त विस्तार व्याप्त हो जाता है ऐसा जिसका स्वभाव है, [अयं जीवः ] ऐसा यह जीव
[इति ] पूर्वोक्त प्रकारसे (परद्रव्यका तथा परभावोंका) [अकर्ता स्थितः ] अक र्ता सिद्ध हुआ,
[तथापि ] तथापि [अस्य ] उसे [इह ] इस जगतमें [प्रकृतिभिः ] क र्मप्रकृ तियोंके साथ [यद् असौ
बन्धः किल स्यात् ]
जो यह (प्रगट) बन्ध होता है, [सः खलु अज्ञानस्य कः अपि गहनः महिमा
स्फु रति ]
सो वह वास्तवमें अज्ञानकी कोई गहन महिमा स्फु रायमान है
भावार्थ :जिसका ज्ञान सर्व ज्ञेयोंमें व्याप्त होनेवाला है ऐसा यह जीव शुद्धनयसे
परद्रव्यका कर्ता नहीं है, तथापि उसे कर्मका बन्ध होता है यह अज्ञानकी कोई गहन महिमा है
जिसका पार नहीं पाया जाता ।१९५।
(अब इस अज्ञानकी महिमाको प्रगट करते हैं :)
पर जीव प्रकृतीके निमित्त जु, उपजता नशता अरे !
अरु प्रकृतिका जीवके निमित्त, विनाश अरु उत्पाद है
।।३१२।।
अन्योन्यके जु निमित्तसे यों, बन्ध दोनोंका बने
इस जीव प्रकृती उभयका, संसार इससे होय है ।।३१३।।