Samaysar (Hindi).

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कहानजैनशास्त्रमाला ]
सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार
४७३
यथा कोऽपि नरो जल्पति अस्माकं ग्रामविषयनगरराष्ट्रम्
न च भवन्ति तस्य तानि तु भणति च मोहेन स आत्मा ।।३२५।।
एवमेव मिथ्याद्रष्टिर्ज्ञानी निःसंशयं भवत्येषः
यः परद्रव्यं ममेति जानन्नात्मानं करोति ।।३२६।।
तस्मान्न मे इति ज्ञात्वा द्वयेषामप्येतेषां कर्तृव्यवसायम्
परद्रव्ये जानन् जानीयात् द्रष्टिरहितानाम् ।।३२७।।
अज्ञानिन एव व्यवहारविमूढाः परद्रव्यं ममेदमिति पश्यन्ति ज्ञानिनस्तु निश्चयप्रतिबुद्धाः
परद्रव्यकणिकामात्रमपि न ममेदमिति पश्यन्ति ततो यथात्र लोके कश्चिद् व्यवहारविमूढः
परकीयग्रामवासी ममायं ग्राम इति पश्यन् मिथ्याद्रष्टिः, तथा यदि ज्ञान्यपि कथचिंद्
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[व्यवहारभाषितेन तु ] व्यवहारके वचनोंको ग्रहण करके [परद्रव्यं मम ] ‘परद्रव्य मेरा है’
[भणन्ति ] ऐसा क हते हैं, [तु ] परन्तु ज्ञानीजन [निश्चयेन जानन्ति ] निश्चयसे जानतेे हैं कि
[किञ्चित् ] कोई [परमाणुमात्रम् अपि ] परमाणुमात्र भी [न च मम ] मेरा नहीं है’
[यथा ] जैसे [कः अपि नरः ] कोई मनुष्य [अस्माकं ग्रामविषयनगरराष्ट्रम् ] ‘हमारा ग्राम,
हमारा देश, हमारा नगर, हमारा राष्ट्र’ [जल्पति ] इसप्रकार क हता है, [तु ] किन्तु [तानि ] वे [तस्य ]
उसके [न च भवन्ति ] नहीं हैं, [मोहेन च ] मोहसे [सः आत्मा ] वह आत्मा [भणति ] ‘मेरे हैं’
इसप्रकार क हता है; [एवम् एव ] इसीप्रकार [यः ज्ञानी ] जो ज्ञानी भी [परद्रव्यं मम ] ‘परद्रव्य मेरा
है’ [इति जानन् ] ऐसा जानता हुआ [आत्मानं करोति ] परद्रव्यको निजरूप क रता है, [एषः ] वह
[निःसंशयं ] निःसंदेह अर्थात् निश्चयतः [मिथ्यादष्टिः ] मिथ्यादृष्टि [भवति ] होता है
[तस्मात् ] इसलिये तत्त्वज्ञ [न मे इति ज्ञात्वा ] ‘परद्रव्य मेरा नहीं है’ यह जानकर, [एतेषां
द्वयेषाम् अपि ] इन दोनोंका (लोक का और श्रमणका) [परद्रव्ये ] परद्रव्यमें [कर्तृव्यवसायं
जानन् ] क र्तृत्वके व्यवसायको जानते हुए, [जानीयात् ] यह जानते हैं कि [दृष्टिरहितानाम् ] यह
व्यवसाय सम्यग्दर्शनसे रहित पुरुषोंका है
टीका :अज्ञानीजन ही व्यवहारविमूढ़ (व्यवहारमें ही विमूढ़) होनेसे परद्रव्यको ऐसा
देखतेमानते हैं कि ‘यह मेरा है’; और ज्ञानीजन तो निश्चयप्रतिबुद्ध (निश्चयके ज्ञाता) होनेसे
परद्रव्यकी कणिकामात्रको भी ‘यह मेरा है’ ऐसा नहीं देखतेमानते इसलिये, जैसे इस जगतमें
कोई व्यवहारविमूढ़ ऐसा दूसरेके गाँवमें रहनेवाला मनुष्य ‘यह ग्राम मेरा है’ इसप्रकार देखता
मानता हुआ मिथ्यादृष्टि (विपरीत दृष्टिवाला) है, उसीप्रकार यदि ज्ञानी भी किसी प्रकारसे