कहानजैनशास्त्रमाला ]
सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार
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जीव एव मिथ्यात्वादिभावकर्मणः कर्ता, तस्याचेतनप्रकृतिकार्यत्वेऽचेतनत्वानुषंगात् ।
स्वस्यैव जीवो मिथ्यात्वादिभावकर्मणः कर्ता, जीवेन पुद्गलद्रव्यस्य मिथ्यात्वादिभावकर्मणि क्रियमाणे
पुद्गलद्रव्यस्य चेतनानुषंगात् । न च जीवः प्रकृतिश्च मिथ्यात्वादिभावकर्मणो द्वौ कर्तारौ, जीववद-
चेतनायाः प्रकृतेरपि तत्फलभोगानुषंगात् । न च जीवः प्रकृतिश्च मिथ्यात्वादिभावकर्मणो
द्वावप्यकर्तारौ, स्वभावत एव पुद्गलद्रव्यस्य मिथ्यात्वादिभावानुषंगात् । ततो जीवः कर्ता, स्वस्य
कर्म कार्यमिति सिद्धम् ।
पुद्गलद्रव्यको [मिथ्यात्वम् ] मिथ्यात्वभावरूप [कुरुतः ] क रते हैं ऐसा माना जाये, [तस्मात् ]
तो [द्वाभ्यां कृतं तत् ] जो दोनोंके द्वारा किया [तस्य फलम् ] उसका फल [द्वौ अपि भुञ्जाते ]
दोनों भोगेंगे !
[अथ ] अथवा यदि [पुद्गलद्रव्यं ] पुद्गलद्रव्यको [मिथ्यात्वम् ] मिथ्यात्वभावरूप [न
प्रकृतिः करोति ] न तो प्रकृ ति क रती है [न जीवः ] और न जीव क रता है ( – दोनोंमेंसे कोई नहीं
क रता) ऐसा माना जाय, [तस्मात् ] तो [पुद्गलद्रव्यं मिथ्यात्वम् ] पुद्गलद्रव्य स्वभावसे ही
मिथ्यात्वभावरूप सिद्ध होगा ! [तत् तु न खलु मिथ्या ] क्या यह वास्तवमें मिथ्या नहीं है ?
(इससे यह सिद्ध होता है कि अपने मिथ्यात्वभावका — भावकर्मका — कर्ता जीव ही है ।)
टीका : — जीव ही मिथ्यात्वादि भावकर्मका कर्ता है; क्योंकि यदि वह (भावकर्म)
अचेतन प्रकृतिका कार्य हो तो उसे ( – भावकर्मको) अचेतनत्वका प्रसंग आ जायेगा । जीव अपने
ही मिथ्यात्वादि भावकर्मका कर्ता है; क्योंकि यदि जीव पुद्गलद्रव्यके मिथ्यात्वादि भावकर्मको
करे तो पुद्गलद्रव्यको चेतनत्वका प्रसंग आ जायेगा । और जीव तथा प्रकृति दोनों मिथ्यात्वादि
भावकर्मके कर्ता हैं ऐसा भी नहीं है; क्योंकि यदि वे दोनों कर्ता हों तो जीवकी भाँति अचेतन
प्रकृतिको भी उस (-भावकर्म)का फल भोगनेका प्रसंग आ जायेगा । और जीव तथा प्रकृति दोनों
मिथ्यात्वादि भावकर्मके अकर्ता हैं सो ऐसा भी नहीं है; क्योंकि यदि वे दोनों अकर्ता हों तो
स्वभावसे ही पुद्गलद्रव्यको मिथ्यात्वादि भावका प्रसंग आ जायेगा । इससे यह सिद्ध हुआ कि —
जीव कर्ता है और अपना कर्म कार्य है (अर्थात् जीव अपने मिथ्यात्वादि भावकर्मका कर्ता है और
अपना भावकर्म अपना कार्य है) ।
भावार्थ : — इन गाथाओंमें यह सिद्ध किया है कि भावकर्मका कर्ता जीव ही है । यहाँ
यह जानना चाहिए कि — परमार्थसे अन्य द्रव्य अन्य द्रव्यके भावका कर्ता नहीं होता, इसलिये जो
चेतनके भाव हैं उनका कर्ता चेतन ही हो सकता है । इस जीवके अज्ञानसे जो मिथ्यात्वादि भावरूप
परिणाम हैं वे चेतन हैं, जड़ नहीं; अशुद्धनिश्चयनयसे उन्हें चिदाभास भी कहा जाता है । इसप्रकार