Samaysar (Hindi). Kalash: 203.

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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
(शार्दूलविक्रीडित)
कार्यत्वादकृतं न कर्म न च तज्जीवप्रकृत्योर्द्वयो-
रज्ञायाः प्रकृतेः स्वकार्यफलभुग्भावानुषंगात्कृतिः
नैकस्याः प्रकृतेरचित्त्वलसनाज्जीवोऽस्य कर्ता ततो
जीवस्यैव च कर्म तच्चिदनुगं ज्ञाता न यत्पुद्गलः
।।२०३।।
वे परिणाम चेतन हैं, इसलिये उनका कर्ता भी चेतन ही है; क्योंकि चेतनकर्मका कर्ता चेतन ही
होता है
यह परमार्थ है अभेददृष्टिमें तो जीव शुद्धचेतनामात्र ही है, किन्तु जब वह कर्मके
निमित्तसे परिणमित होता है तब वह उन-उन परिणामोंसे युक्त होता है और तब परिणाम-
परिणामीकी भेददृष्टिमें अपने अज्ञानभावरूप परिणामोंका कर्ता जीव ही है
अभेददृष्टिमें तो
कर्ताकर्मभाव ही नहीं है, शुद्ध चेतनामात्र जीववस्तु है इसप्रकार यथार्थतया समझना चाहिये कि
चेतनकर्मका कर्ता चेतन ही है ।।३२८ से ३३१।।
अब इस अर्थका कलशरूप काव्य कहते हैं :
श्लोकार्थ :[कर्म कार्यत्वात् अकृतं न ] जो क र्म (अर्थात् भावक र्म) है वह कार्य है,
इसलिये वह अकृत नहीं हो सकता अर्थात् किसीके द्वारा किये बिना नहीं हो सकता [च ] और
[तत् जीव-प्रकृत्योः द्वयोः कृतिः न ] ऐसे भी नहीं है कि वह (भावक र्म) जीव और प्रकृ ति
दोनोंकी कृ ति हो, [अज्ञायाः प्रकृतेः स्व-कार्य-फल-भुग्-भाव-अनुषंगात् ] क्योंकि यदि वह
दोनोंका कार्य हो तो ज्ञानरहित (जड़) प्रकृ तिको भी अपने कार्यका फल भोगनेका प्रसंग आ
जायेगा
[एकस्याः प्रकृतेः न ] और वह (भावक र्म) एक प्रकृ तिकी कृ ति (अके ली प्रकृ तिका
कार्य) भी नहीं है, [अचित्त्वलसनात् ] क्योंकि प्रकृ तिका तो अचेतनत्व प्रगट है (अर्थात् प्रकृ ति
तो अचेतन है और भावक र्म चेतन है) [ततः ] इसलिये [अस्य कर्ता जीवः ] उस भावक र्मका
क र्ता जीव ही है [च ] और [चिद्-अनुगं ] चेतनका अनुसरण करनेवाला अर्थात् चेतनके साथ
अन्वयरूप (
चेतनके परिणामरूप) ऐसा [तत् ] वह भावक र्म [जीवस्य एव कर्म ] जीवका
ही क र्म है, [यत् ] क्योंकि [पुद्गलः ज्ञाता न ] पुद्गल तो ज्ञाता नहीं है (इसलिये वह भावक र्म
पुद्गलका क र्म नहीं हो सकता)
भावार्थ :चेतनकर्म चेतनके ही होता है; पुद्गल जड़ है, उससे चेतनकर्म कैसे हो
सकता है ? ।२०३।
अब आगेकी गाथाओंमें, जो भावकर्मका कर्ता भी कर्मको ही मानते हैं उन्हें समझानेके
लिए स्याद्वादके अनुसार वस्तुस्थिति कहेंगे; पहले उसका सूचक काव्य कहते हैं :